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चरकसंहिता - भा० टी०- 1
तंत्रप्रतिर्निविष्टायां परिषदिज्ञानविज्ञान वचन प्रतिवचनशक्तिसम्पन्नायां मूढायां वा न कथञ्चित् केनचित् सह जल्पोंविधीयते । मूढायान्तु सुहृत्परिषदि उदासीनायां वा ज्ञानविज्ञानमन्तरेणाप्यदीप्तयशसा महाजन द्विष्टेन सहजल्पोविषयते । तद्विधेनचसहकथयताआविद्वदीर्घसूत्रसंकुलैर्वाक्य दण्डकैः कथयित - व्यम् । अतिहृष्टंमुहुर्मुहुरुप हसता परंनिरूपयताचपरिषदमाकारैब्रुवतश्चास्यवाक्यावकाशोनदेयः । काष्ठशब्दञ्चनुवन्वक्तव्यो नोच्यतइति । अथवा पुनर्ही नातेप्रतिज्ञेतिपुनश्चाह्वयमानः प्रतिवक्तव्यः । परिसंवत्सरंभवानशिक्षतांतावत् ॥ अथवा पर्याप्त - मेतावन्ते । सकृदेवहिपारिक्षेपिकंनिहितंनिहतमाहुरिति । नास्ययोगः कर्त्तव्यः कथञ्चिदप्येवं श्रेयसास हविगृह्यवक्तव्यमित्याहुरेके । नत्वेवंज्यायसासहविग्रहप्रशंसन्ति कुशलाः ॥ १८॥
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ज्ञान, विज्ञान, प्रतिवचन, शक्तिसंपन्न प्रतिनिविष्ट परिषद् में अर्थात अपनेसे बहुत बडे २ विद्वानों की सभामें तथा मूखाँकी सभामें किसीसे किसी प्रकारका जल्प करना उचित नही है | सुहृद्सभा और उदासीन सभा यदि मूढ भी हो तो उसमें कोई दूसरा वैद्य अपने ऊपर जीतनेकी इच्छासे आवे तो ज्ञान, विज्ञानके विना भी अपने यशकी इच्छा से उसको जीतने के लिये शास्त्रार्थ करे । ऐसे पुरुषके साथ संभाषण करते हुए कठिन तथा दीर्घ संकुलीदार गूढार्थ सूत्रोंद्वारा पेचीदा बातों से उसको जीतनेका यत्न करे और अति प्रसन्न मुख होकर हंसता हुआ प्रतिवादीसे मसखरी करता हुआ सभाके आकारको जानकर उसको बोलनेका अवकाश न दे और यदि वह कठिन शब्दों को वोले तो उसको कहे भाई अन्टसन्ट क्या बकते हो फिर तो कहो क्या कहते हो याद वह उत्तर देवे तो कहे कि भाई ऐसा मत कहो इसमें तो तुम्होर ही पक्षका खण्डन होगया अभी तुम एकवर्ष और पढो फिर आकर शास्त्रार्थ करना अथवा ऐसा कहे कि बस हमने जान लिया आपको जो कुछ आता है। हमने आपकी भले प्रकार परीक्षा करली है इतना ही बहुत है। यदि वह अपने ऊपर कोई आक्षेप करे तो झट कठिन संस्कृतः बोलकर यह लो तुम्हारा यह पक्ष भी खण्डन होगया। मित्र अभी और पाढये । परन्तु इस प्रकारका प्रयोग विद्वानोंकी सभामें अथवा किसी भले पुरुषके साथ नहीं करना चाहिये। इस प्रकारके संभाषण,
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