________________
विमानस्थान-अ०८.. करनेका किसी २ आचार्यका मृत है। हमारे मतमें यह अन्याय है । बुद्धिमानको इस प्रकारका शास्त्रार्थ पंडितोंके सन्मुख और किसी योग्य पुरुषसे नहीं करना. चाहिये ऐसा बुद्धिमानोंका मत है ॥ १८॥
प्रत्यवरेणतुससमानाभिमतेनवाविगृह्मजल्पतासुहृत्परिषदिकथायतव्यम् । अथवाप्युदासीनपरिषदिअनवधानश्रवणज्ञानविज्ञानोपधारणवचनशक्तिसम्पन्नायांकथयताचावहितेनपरस्यसाद्गुण्यदोषबलमवेक्षितव्यम् । समवेक्ष्यचयनश्रेष्ठमन्येतनास्यतत्रजल्पोजयत्अनाविष्कतमयोगंकुर्वन । यत्रत्वेनमवरमन्येततत्रैवैनमाशुनिगृह्णीयात् ॥१९॥ सुहृद् सभामें हीन समान और उत्तम गुणवालोंसे अर्थात् तीनों प्रकारके पुरुषों से शास्त्रार्थ कर लेना अनुचित नहीं । अथवा उदासीन सभामें अर्थात् जिस सभामें अप्रमत्त, श्रवण, ज्ञान, विज्ञान, उपधारण और वचन शक्ति सम्पन्न पुरुष बैठे हुए: हों ऐसी सभामें प्रतिवादीके सद्गुणों और दोषोंको सावधानीसे परीक्षा कर लेवे। यदि प्रतिवादी गुणों में अपनेसे बलवान हो तो उससे शास्त्रार्थ न करे और एकाधा शास्त्रकी बात इस प्रकार कहकर चुप होजावे जिससे सभाके मनुष्य इसको प्रति-- वादार्स हीन न समझें यदि प्रतिवादी गुणोंमें अपनेसे हीन प्रतीत हो तो उसको झट शास्त्रार्थमें दबालेवे ॥ १९॥
तत्रनुखल्विमेप्रत्यवराणामाशुनिग्रहेभवन्तिउपायाः। तद्यथा,, . श्रुतहीनंमहतासत्रपाठेनाभिभवेत्विज्ञानहीनंपुन:कष्टशब्देन
वाक्येन, वाक्यधारणाहीनमाविद्धदीर्घसंकुलैवाक्यदण्डकैः, . प्रतिभाहीनंपुनर्वचनेनानेकविधानानेकार्थवाचिना,वचनशक्तिहीनमक्तिस्यवाक्यस्याक्षेपेण, आविशारदमपत्रपणेन, कोपनमायासनेन, भीरुवित्रासेन, अनवहितंनियमनेनइत्येवमेतै-- रुपायैरवरमभिभवेत् ॥ २० ॥ विगृह्यकथयेयुत्यायुक्तञ्चन
निवारयन् । विगृह्यभाषातीवहिकेषाञ्चिद्बोहमावहेत् ॥ २१ ॥ ... नाकार्यमस्तिकुद्धस्यनावाच्यमपिविद्यतोकुशलानाभिनन्द
न्तिकलहसमितोसताम् ॥ २२ ॥ . . . . . . ....