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निदानस्थान-अ० ३.
(४३९) ध्यत्वंनचहेतुमत् ॥ २६ ॥ निदानेरक्तपित्तस्यव्याजहारयुनर्वसुः। वीतमोहरजोदोषलोभमानमदस्पृहः ॥२७॥ . इति अग्निवेशकृतेतन्त्रेचरकप्रतिसंस्कृतेरक्तपित्तनिदा
नंनामद्वितीयोऽध्यायः ।। अव अध्यायका उपसंहार करतेहैं । इस रक्तपित्त निदाननामक अध्यायमें रक्त पित्तके कारण, उत्पत्ति, पूर्वरूप, उपद्रव, ऊध्ये और अधोगमन, वातादि दोषोंका: अनुवंध, साध्य और असाध्य तथा उनके कारण यह सब मोह, रजोदोष, लोभ, . मान, मद और स्पृहारहित भगवान् पुनर्वसुजीने कथन कियेहै ॥ २६ ॥ २७ ॥ इति श्रीमहापंचरक० नि० स्था० पं.रामप्रसादवेद्य० भाषाटीकायां रक्तपित्तीनदानं
नामद्वितीयोऽध्यायः॥२॥ तृतीयोऽध्यायः।
अथातोगुल्मनिदानं व्याख्यास्याम इति हस्माह भगवानात्रेयः। अब हम गुल्मनिदानकी व्याख्या करतहैं इस प्रकार भगवान् आत्रेयजी कथन करने लगे।
गुल्मोंके भेद । इहखलुपश्चगुल्माभवन्ति । तद्यथा-वातगुल्मः पित्तगुल्मः श्लेष्मगुल्मोनिचयगुल्मःशोणितगुल्मइति ॥१॥ गुल्मरोग पांच प्रकारका होता है-जैसे, वातगुल्म,. पित्तगुल्म, कफगुल्म और सन्निपातगुल्म तथा रक्तजगुल्म ॥१॥
अग्निवेशका प्रश्न । एवंवादिनभगवन्तमात्रेयमग्निवेशउवाचकथामिहभगवन् ! पञ्चानांगुल्मानांविशेषमभिजानीमहे । नाविशेषविद्रोगाणामौषधविदापिभिषप्रशमनसमर्थइति ॥२॥ इस प्रकार कथन करते हुए भगवान् आत्रेयजीसे अग्निवेश कहने लगे कि हे भग-- वन् ! इन पांच प्रकारके गुल्मोंको हम यथोचित रीतिपर कैसे जान सकतेहैं अर्थात इनके जाननेका प्रकार कथन कीजिये क्योंकि रोगके निदानको यथोचित रीतिपर विना जाने अर्थात रोगके बिना समझे औषध क्रियामें कुशल वैद्य भी रोग शान्ति नहीं कर सकता ॥ २॥ . .