________________
(४७८)
चरकसंहिता-भा० टी०। 'किया हो उसका वमनमें निकलना, बीचबीचमें मुख और.पैरोंका सुखना, हार्थोको नित्यप्रति. देखनेकी इच्छा होना, नेत्र सफेद होना, दोनों वाहोंके प्रमाण जाननेकी इच्छा होना एवम् स्त्रीकी · कामना होना तथा अत्यन्त धृणा, देहमें भयंकरताका होना स्वममें तालाव, सरोवर, नदी आदि जलाशयोंका जलरहित और सूखा हुआ देखना एवम् ग्राम,नगर,रास्ता.देश इन सबका सूखे हुए अथवा दग्ध होते हुए एवम् टूटे फूटे दीखना तथा वनोंको कटा हुआ देखना एवम् त्रिफला, मोर,बन्दर, तोता,सांप, कौआ,उल्लू, इनका स्वममें स्पर्श करना और घोडा, ऊंट, गधा, तथा सूअर युक्त सवारीमें बैठना और केश, अस्थि, भस्म, तुष, अंगार इनकी ढेरोंपर चढना ऐसा स्वममें दीखना यह सव शोषरोगके पूर्वरूप हैं ॥ २३ ॥
राजयक्ष्माके रूप ।। अतऊर्द्धमेकादशरूपाण। तद्यथा-शिरसःप्रतिपूरणं कासः ।। श्वासःस्वरभेदःश्लेष्मणश्छदनं शोणितष्ठीवन पार्श्वसंरोजन अंसावमदोज्वरःअतीसारस्तथा अरोचक इति ॥ २४ ॥ ।
अब शोषरोगके ग्यारह प्रकारके रूपोंका कथन करते हैं। जैसे, मस्तकका बहुत भारी होना अथवा पीडायुक्त होना । खांसी, स्वरभेद, कफका गिरना, श्वास, थूकमें रुधिरका आना, पसलियोंमें पीडा तथा कन्धोंमें पीडा, ज्वर, अतिसार और अरुचि ॥ २४॥
तत्रापरिक्षीणमांसशोणितोबलवानजातारिष्टःसर्वैरपि शोष. लिरुपद्रुतःसाध्यो ज्ञेयः॥२५॥
अव साध्य असाध्यको कहते हैं । जिस मनुष्यके शरीरमें मांस और रक्त क्षीण न हुए हों और स्वयं बलवान् हो तथा मरणख्यापक लक्षण न हों वह शोष-रोगी शोषरोगके लक्षणयुक्त होनेपर भी साध्य होता है ॥ २५ ॥
बलवर्णोपचयोपचितो हि सहिष्णुत्वाद्वयाध्योषधबलस्य काम बहुलिङ्गोऽप्यल्पलिङ्ग एवमन्तव्यः ॥ २६ ॥ जो मनुष्य बल और वर्णसे युक्त हो एवम् व्याधि तथा औषधीके बलको सहन करसकता हो ऐसे मनुष्यके शरीरमें राजयक्ष्माके सम्पूर्ण लक्षण मिलने पर भी वह साध्य होता है ॥ २६ ॥