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विमानस्थान-अ० ४. . नातुरशरीरगतान्परीक्षेतान्यत्ररसज्ञानात् । तद्यथा,अन्नकूजन.. सन्धिस्फोटनमंगुलीपर्वणांचस्वरविशेषांश्चयेचान्येऽपिकेचिच्छरीरोपगता शब्दास्युस्ताऽश्रोत्रेणपरीक्षेत। वर्णसंस्थानप्रमागच्छायाशरीरप्रकृतिविकारौचक्षुवैषयिकाणचान्यानिकानि चतानिचक्षुषापरीक्षेत ॥६॥ प्रत्यक्ष द्वारा रोगके तत्वको जाननेकी इच्छावाला वैद्य रसज्ञानके बिना सब इन्द्रियों द्वारा रोगीके शरीरगत इन्द्रियार्थोंकी परीक्षा करे उसीको दिखाते हैं। जैसे-आंतोंका गूंजना, संधियोंका स्फोटन, अंगुलियोंका तथा पाका मटकना; स्वरभंग होना इनके सिवाय अन्यभी रोगीके. शरीरमें होनेवाले जितने प्रकारकें शब्द हों उनको वैद्य अपनी कर्णेन्द्रिय द्वारा परीक्षा करे तथा हृदय और धमनी आदिकोंकी गति तथा शन्दज्ञानकारक यन्त्रद्वारा परीक्षा करोशरीर तथा नेत्र,जिता) नरू, आदिकोंका वर्ण, मत्र आकार, प्रमाण, कांति, शरीरकी प्रकृति और विकृति आदिकोंका वर्ण तथा अन्यभी देखने योग्य जो विषय हों उनकी चक्षुइंद्रियद्वारा परीक्षा करे ॥६॥
अनुमानज्ञानका लक्षण । रसन्तुखलुआतुरशरीरगतमिन्द्रियवैषयिकमप्यनुमानादवग- . च्छेत् । नास्यप्रत्यक्षेणग्रहणमुपपद्यते । तस्मादातुरपरिप्रश्नेने वातुरमुखरसंविधात् । यूकापसर्पणेनत्वस्यशरीरवैरस्यमक्षिा कोपदर्शनेनशरीरमाधुर्यम् । लोहितपित्तसन्देहेतुकिन्धारि.. लोहितलोहितापिनवेतिश्वकाकभक्षणात्धारिलोहितमभक्षणा लोहितमित्यनुमातव्यम्एवमन्यानंप्यातुरशरीरगतानरसाननु. मिर्मात । गन्धास्तुखलुसर्वशरीरगतानातुरस्यप्रतिवकारि- . कान्नाणेनपरीक्षतस्पर्शचपाणिनाप्रकृतियुक्तमितिमत्यक्षतोऽ नुमानकदेशतश्चपरीक्षणमुक्तम् ॥ ७॥ परन्त रोगीके शरीरगत रसनेंद्रियका विषय होनेपरभी अनुमान दारा जानना चाहिये । क्योंकि रसका नेत्रोंदारा प्रत्यक्ष हो नहीं सकता और जिहाद्वारा उसकों. कोई बान नहीं सकता इसलिये रोगीसे : प्रश्नदारा उसके मुखके रसादिकोंकों जानना चाहिये। शरीरपर, यूका: भादिके चलनेस-शरीरकी विरसताको.जानन.