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. . विमानस्थान-अ०७. . .(५८३) :. वैठकर उस कडाहीमें तेलको सब तरहसे देखताहुआ मंदमंद अग्निसे पकावे । जक देखे कि पानी जल चुकाहै और औषधियोंके पकनेका शब्द शान्त होगया । फेन भी जाता रहा । तैल स्वच्छ होगया। जैसे-द्रव्यादिक उसमें डाले हैं उन सबका गन्ध,रस,वर्ण तेलमें आगया तब उस तेलमें पड़ी औषधियोंके कल्कको निकालकर अंगुलियोंसे मसलताहुआ बत्ती बनाकर देखे । यदि उस कल्कद्रव्यकी बत्ती बनजाय और तेलको छोडने लगजाय और अंगुलियोंसे न चिपटें तो जाने कि तेल अब सिद्ध होगया और यह समय उस तेलके उतारनेका है । फिर उसको उतारकर जव वह ठंडा हो जाय किसी अच्छे वस्तुसे विधिपूर्वक छानकर शुद्ध और दृढ कलशमें भरकर ऊपरसे किसी पात्रद्वारा ढकदेवे तथा श्वेत और नये वस्त्रसे उसके मुखको बांधकर किसी उत्तम स्थानमें रख देवे फिर जब आवश्यकता हो तो इस तैलमेंसे रोगीको यथोचित्त मात्रा पान करावे ॥ ३१॥
तेनसाधुविरिच्यते । सम्यगपहृतदोषस्यचास्यानुपूर्वीयथोक्ता । ततश्चैनमनुवासयेदनुवासनकाले ॥ ३२॥ इस तैलके उपयोगसे उत्तम विरेचन होताहै । जब उत्तम विरेचन होकर दोष निकलनेसे मनुष्य शुद्धदेह होजाय तब इसको विधिवत् यवागू आदि पथ्य सेवन करावे । और अनुवासनके समय अनुवासन कर्म करे ॥ ३२ ॥
एतेनैवचपाकविधिनासर्षपकरञ्जकोषातकास्नेहानुपकल्प्यपाअयेत्सर्वविशेषानवेक्ष्यमाणस्तेनागदोभवति ॥ ३३ ॥ इसी तैलपाविधिसे-सरसों,करंज और कडवी तोरीके बीजोंका भी तैल बनाना चाहिये । फिर विचार पूर्वक कृमिनाश करने के लिये इन तेलोंका उपयोग. करे। ऐसा करनेसे मनुष्य कृमिरोगसे छूटकर नीरोग होजाताहै ॥ ३३॥ .
इत्येतद्वयानांश्लेष्मपुरीषसम्भवानांक्रिमीणांसमुत्थानस्थानसंस्थानवर्णनामप्रभावचिकित्सितविशेषाव्याख्याताःसामान्यतः ॥ ३४॥ . इसप्रकार-कफजन्य और पुरीषजन्य कृमियों के निदान, लक्षण, वर्ण, प्रभाव, नाम और चिकित्साविशेषका सामान्यरूपसे कथनं कियागया हैं ॥ ३४॥ ..
विशेषतस्तुअल्पमात्रमास्थापनानुवासनांनुलोमहरणभूथि
ठतेष्वौषधिपुरीषजानांक्रिमीणचिकित्सितकार्य्यमात्राधि...