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(५८२) चरकसहिता-भा० टी०।
ततोऽर्द्धमात्रौश्यामात्रिवृतयोरईमात्रौदन्तीद्रवन्त्योरतोऽर्द्धमात्रोचव्यचित्रकयोरित्येतत्सम्भारंविडङ्गकषायस्याढिकमात्रेगप्रतिसंसृज्यततस्तैलप्रस्थमावाप्यसर्वमालोडयमहतिउपयो- . गेसमासिच्यानावधिश्रित्यमहत्यासनेसुखोपविष्टःसर्वतःस्नेहमवलोकयन्अजसंमृद्वग्निना साधयेद्दासततमवघयन्। सयदाजानीयाद्विरमातिशब्दः प्रशाम्यति चफेनः,प्रसादमापद्यते स्नेहोयथास्वंगन्धवर्णरसोत्पत्तिःसंवर्त्ततेच, भेषजमंगुलिभ्यां मृद्यमानमनतिमृदुमनतिदारुणमनंगुलिग्राहिचेति । सकालस्तस्यावतारणाय। ततस्तमवतीर्णहृतंशीतीभूतमहतेनवाससापरिपूयशुचौहढेकलशेसमासिच्यपिधानेनपिधायशुक्केनवस्त्रपट्टेनआच्छायसूत्रेणसुवलंसुनिगुप्तंनिधापयेत्। ततोऽस्मात्री प्रयच्छेत्पानाय ॥ ३१ ॥ अब विडंगसैलकी विधि कथन करतेहैं । पहिले रोगीसे कहे कि तू शरदऋतुके अर्थात् नवीन और उत्तम तिलोंको इकटे कर । जब वह तिलोंको इकटे करलेवे तों उन तिलोंको फटक तथा संवार कर एवम् उनमें मट्टी पत्थर आदि चुनकर स्वच्छ बनावे फिर उनको सुन्दर रीतिसे धोकर धूपमें सुखा लेवे । जब सूख जायं फिर उन तिलोंको बायविडंगके क्वाथकी भावना देकर धूपमें सुखाता जावे।इसी प्रकार वायविडंगके क्वाथकी इक्कीस भावना देवे । जव सूख जायं तो ऊखलामें कूटकर फिर सिलपर वारीक पसि डाले । फिर उस वारीक तिलोंके चूर्णको किसी चिकनेपा. त्रमें भरकर उसमें वायविडंगका गर्मगर्म काथ छिडकता जाय और हाथोंसे उन तिलोंको मोडताजाय जो उनमें से तेल हाथोंको लगे अथवा पात्रमें निकले उस , तेलको हाथसे किसी स्वच्छ पात्र में पोंछता जायं जब सब तेल निकल आवे तो उस । तेलको किसी स्वच्छ पात्रमें भरकर रखदेवे । फिर पठानी लोद कोद्रव (कोदाअन्न) यह दोनों चार चार तोला लेवे। इनको वायविडंगके क्वाथके साथ पीसकर दो पिंड बनालेवे । इसके. अनन्तर दो दो तोला. दक्षिणी और पहाडी निशोथ दो दो -बोला,दोनों प्रकारकी दंती एक एक तोला चव्य और चित्रक इन सबको चार सेर वायविडंगके क्वाथमें मिलाकर. पूर्वोक्तं चार सेर तेलमें मिलादेवे । फिर सब औषः घियोंको एक बडी कडाहीमें चढाकर भट्टीपर रक्खे । स्वयं एक ऊंचे आसनपर