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(५७६) चरकसंहिता-भा० टी०। पसंचारी जीवोंका मांस, पिष्टान्नं, खीर आदि.पकवान, कस्मेकी चिकनाई आदि खूब पेटभर खिला देना चाहिये ऐसा करनेसे सव कृमि इधर उधरसे आकर अपने स्थानोंको छोडकर कोष्ठमें आजाते हैं और आहार द्रव्यके साथ मिलकर कुलबुलाने लगते हैं फिर रात्रि बीतजानेपर प्रातःकाल ही अन्नको पाचन हुआ जान योग्य वैद्य आस्थापन, वमन, तथा विरेचन द्वारा कृमियोंको निकाल डाले ॥ १७॥१८॥.
उपपादनीयश्चेत्स्यात्सर्वान्परीक्ष्याविशेषान् समीक्ष्यसम्यक् । अथाहरेतिब्रूयान्मूलकसर्षपलशुनकरञ्जशिग्रुमधुशिग्रुखरपुष्पभूस्तृणसुमुखसुरसकुठेरक 'गण्डी' कंण्डीरकालमालकपर्णासक्षवकफाणिज्जकानि । सर्वाणिअथवायथालाभम् । तानि आहृतानिअभिसमीक्ष्यखण्डशश्छेदयित्वाप्रक्षाल्यपानीयेनसुप्रक्षालितायांस्थाल्यांसमवाप्यगोमूत्रेणाद्धोदकेनाभ्यासिच्य साधयेत् । सततमवघट्टयेत्दातस्मिशीतीभूतेतुउपयुक्त भूयिष्ठेऽम्भासिगतरसेषुऔषधीषुस्थालीमवतार्थसुपरिपतंकषायसुखोष्णंमदनफलपिप्पलीविडङ्गकल्कतलोपहितंसर्जिकालवणमभ्यासिच्यबस्तौविधिवदास्थापयेदेनम् ॥ १९ ॥ यदि वह रोगी फिर भी ऐसा करनेके योग्य हो तो सब प्रकारसे उसकी परीक्षा करके तथा सम्पूर्ण विशेषरूपसे जानकर उचित रीतिपर फिर संशोधन करे । अब संशोधन द्रव्योंको कथन करते हैं-मूली, सरसों,लहसुन,करंज,सहिजना,अजवायन, भूतृण, सुमुख, (तुलसीका भेद ) सुफेद तुलसी, वनतुलसी, गण्डीर,कालमालका. पर्णास, क्षवक, और फणिज्झक ( मरुएके भेद) इन सबको अथवा जो मिलसके उनको विधिवत् परीक्षा कर छोटेरटुकडे कर डाले फिर पानीके साथ धोकर शुद्ध वर्तनमें डाल दे और उस वर्तनमें गोमूत्र और गोमूत्रसे आधा पानी मिलाकर पकावे और कडछीसे बराबर हिलाता जावे । जब सब पानी सूखकर गोमूत्र भी चतुर्थभाग रहजाय तब उसको उतारकर कपडेसे छान डाले फिर उस शुद्ध स्वच्छ - काढेमें मैनफल, पीपल और वायविडंग इनका कल्क मिला दे तथा सज्जीखार और सेंधानमकको थोडा डाले फिर उसमें तेल और उचित समझे तो थोडा गर्म जल मिलाकर सहती २ आस्थापन, बस्तिकर्म करे ॥ १९ ॥
__ संशोधन औषधकी विधि। तैयाकोलकुटजांढकीकुंष्ठकैटर्यकषायणतथाशिग्रुपीलुकुस्तुः