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विमानस्थान:
(५७७) म्बुरुकटुकसर्षपकषायेणतथामलकशृङ्गवरदारुहरिद्रापिचुमर्दकषायणमदनफलसंयोगसंयोजितेनत्रिरात्रंसतरावास्थापयेत् ॥ २०॥
अथवा इसी प्रकार लाल तथा सफेद आक, कुडा, अरहर, कूठ और कायफल इनके काथमें मैनफलका कल्क मिलाकर आस्थापन वस्तिकर्म करे। अथवा सहि: जना, पोल, धनिया,कुटकी और सरसोंके काढेमें अथवा इसीप्रकार आमले, सोंठ, दारुहल्दी, नीमकी छालके काढेमें मैनफलका कल्क मिलाकर तीन रात्रि अथवा सात रात्रि आस्थापन वस्तिकर्म करे ॥२०॥
प्रत्यागतेचपश्चिमेबस्तौप्रत्याश्वस्तंतदहरेवोभयतोभागहरणं संशोधनंपाययेत्युत्त्या, तस्यविधिरुपदेक्ष्यते ॥२१॥ जब पिछली बस्ति गुदाद्वारा उलटकर बाहर निकलजाय तब उससे दूसरे दिन प्रातःकाल शोधनकर्ता द्रव्योंद्वारा विधिपूर्वक वमन विरेचन करावे। उसकी विधिको कथन करते हैं ॥ २१ ॥
मदनफलपिप्पलीकषायेषुअञ्जलिमात्रेणत्रिवृत्कल्काक्षमात्रमालोडयपातुमस्मैप्रयच्छेत्। तदस्यदोषमुभयतोनिहरतिसाधु॥२२॥ मैनफल और पीपलके सोलह तोला काथमें एक तोला निशोथका कल्क मिला कर रोगीको पिलावे। इसके पीनेसे वमन और विरेचन द्वारा ऊपर और नीचे, दोष भली प्रकार निकल जाते हैं ॥ २२ ॥
एवमेवकल्पोक्तानिवमनविरेचनानिसंसृज्यपाययेदेनंबुझ्यास- :
विशेषानवेक्ष्यमाणः॥२३॥ इसीप्रकार कल्पस्थानमें कहेहुए वमन विरेचन द्रव्योंको विधिवत् सम्पादनाकर यथोचित रीतिसे दोषादिकोंको तथा बलादि व्यवस्था देखकर रोगीको पिलावे२३॥
विरेचन होजानेपर कर्म । अथैनंसम्याग्विरिकंविज्ञायापराह्नशैखरिककषायेणसुखोष्णेन परिषेचयेत्। तेनैवचकषायेणबाह्याभ्यन्तरान्सर्वोदकार्थान्कारयेत्शश्वत् । तदभावेवाकटुतिक्तकषायाणामोषधानांवाथैमूत्रक्षारैर्वा परिषेचयेत् । परिषिक्तञ्चएननिवातमागारमनुप्र
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