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विमानस्थान - अ० ५.
- ( ५५१ ) अन्नके वहन करनेवाले स्रोतोंका मूल-आमाशय औरं वामपार्श्वभाग है । इन स्रोतोंके दूषित होनेसे यह लक्षण होते हैं । जैसे- अन्नकी अभिलाषा न होना, अरुचि होना, अन्नका परिपाक न होना, छर्दि होना इन लक्षणोंसे अन्नके वहन करनेवाले स्रोतों को दूषित हवा जानना चाहिये ॥ ५ ॥ रसवहादिस्रोतों का वर्णन ।
रसवहानांस्रोतसांहृदयंमूलंदशचधमन्यः, शोणितवहानांस्त्रोतसांयकृतमूलंप्लीहाच,मांसवहानाञ्चस्रोतसां स्नायुमूलंत्वक् च, मज्जा वहानांस्रोतसामस्थीनि मूलंसक्थयश्च, शुक्रवहानां स्रोतसांवृषण मूलंशश्च । प्रदुष्टानान्तुरसादिस्रोतसांखलु एषां विज्ञानान्युक्तानिविविधाशितीये अध्यायेयान्येवहिधातूनांप्रदोषविज्ञानानितान्येवयथास्वधातुस्रोतसाम् ॥ ६ ॥
रसके वहन करनेवाले स्रोतोंका मूल हृदय और दश धमनियें हैं । रक्तवाहक स्रोतों का मूल - यकृत (जिगर) और प्लीहा (तिल्ली ) होते हैं । मांसके वहन कर नेवाले स्रोतों का मूल स्नायु नसें और त्वचा हैं । मज्जाके वहन करनेवाले स्रोतों का मूल अस्थियें और सक्थि हैं । वीर्यके वहन करनेवाले स्रोतों का मूल दोनों वृषण और लिंग हैं । इन रसादिक वहन करनेवाले स्रोतोंके बिगडनेसे जो लक्षण होते हैं. वह विविधाशितपीतीय अध्यायमें वर्णन किया गया है ॥ ६ ॥
मूत्रवाही स्रोतोंके लक्षण | मूत्रवहाणांसोतसांबस्तिर्मूलंवंक्षणौच, खल्वेषामिदंप्रदुष्टानां
विज्ञानमतिसृष्टप्रतिबद्धंकुपितमल्पाल्पमभीक्ष्णंवासालंमूत्र.
मूत्रवन्तं दृष्ट्रा सूत्रवहाण्यस्यस्रोतांसि प्रदुष्टानीतिविद्यात् ॥ ७ ॥ मूत्रको वहन करनेवाले स्रोतोंका मूल वस्ति और वंक्षण हैं । इनको दृष्टि हुए जानने के ये लक्षण होते हैं । जैसे - मूत्रका अधिक आना अथवा मूत्रका वृद्ध जाना मूत्रका विगडाहुआ होना मूत्रका लगकर आना थोडा २ आना वा दर्द के. साथ आना इस प्रकारके मूत्रके लक्षणों को देखकर मूत्रवाहक स्त्रोतोंको दूषितः
जानना ॥ ७ ॥
पुरीषवादी स्रोतोंके लक्षण | . पुरीषवहाणां स्रोतसां पक्काशयोमूलंस्थूलगुदश्च प्रदुष्टानांखलु एषामिदं विज्ञानं, कच्छ्रेण अल्पाल्पंसशूलमतिद्रवकुपितम-: