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विमानस्थान-अ०५.
(५४९) नामभिवाहीनिभवन्तिअयनार्थेनापिंचैकेमहर्षयःस्रोतसामे. . . क्समुदयपुरुषमिच्छन्तिसर्वगतत्वात्सर्वसरत्वाञ्चदोषप्रकोपणप्रशमनानांनत्वेतदेवंयस्यसहिपुरुषःस्रोतांसियंचवहन्तियच्चा
वहन्तियत्रचावस्थितानिसर्वतदन्यत्तेभ्यः ॥१॥ 'पुरुषके शरीरमें शिरा, कोष्ठ आदि स्थूल पदार्थ हैं वह सब स्रोतोंके ही प्रकारान्तर हैं क्योंकि पुरुषके शरीरमें संपूर्णभाव स्रोतोंद्वाराही उत्पन्न होते हैं और क्षय नहीं होते।बोत ही परिणामको प्राप्तहुए सम्पूर्ण धातुओंको वहन करतेहैं अर्थात अथास्थानमें पहुंचा देते हैं । स्रोत ही अयनार्थ होते हैं क्योंकि संपूर्ण शरीरमें सर्वगामी होनेसे तथा दोषों के प्रकोपकारक अथवा शमनकारक किये हुए आहारा. दिकोंको सम्पूर्ण शरीरमें व्यापक करदेते हैं । इसलिये कोई स्रोतोंके समुदायको ही पुरुष मानते हैं। परन्तु स्रोतोंका समुदाय पुरुष नहीं होता. त्रिोतोंके समुद्रात यंका जो अधिष्ठाता है स्रोत जिसके आभित हैं, जिसके लिये स्रोत रसादिकोंको बहन करते हैं वह पुरुष है तथा स्रोत जिसको वहन करते हैं। और जिसका आव-. इन करते हैं वह स्रोतोंसे पृथक् पुरुष हैं ॥ १॥
अतिबहुत्वात्तुखलुकेचिदपरिसंख्येयानिआचक्षतेस्रोतांसि,परिसंख्येयानिपुनरन्ये,तेषांस्रोतसांयथास्थानंकतिचित्प्रकारान्मूलतश्चप्रकोपविज्ञानतश्चानुव्याख्यास्यामः। येभविष्यन्त्यलमनुक्तार्थज्ञानवतेविज्ञानायचाज्ञानाय, तद्यथा, प्राणोदका. नरसरुधिरमांसमेदोषस्थमज्जाशुक्रमूत्रपुरीषस्वेदवहानिवातपित्तश्लेष्मणांपुनःसर्वशरीरचराणांसर्वस्रोतांसिअयनभूतानि ॥२॥
अत्यन्त अधिक होनेसे कोई २ स्रोतोंको असंख्य कहते हैं। कोई कहते हैं कि स्रोतोंकी संख्या होसकती है । उन स्रोतोंका प्रकार मेदसे तथा मूलभेदसे और उनके प्रकोप विज्ञानके यथा स्थानमें आगे कथन करेंगे। क्योंकि सम्पूर्ण स्रोतोंका विषय जानलेनेसे जिन स्रोतोंका कथन नहीं भी कियागया. उनको. भी. ज्ञानवान मनुष्य जान सकताहै । तथा यथोचित उपदेश द्वारा अज्ञानी भी जानसकेंगे । वह इस प्रकार हैं प्राणवाही, उदकवाही, अन्नवाही; रसवांही, रक्तवाही, मांसवाही,मेदबाही एवम् अस्थि, मज्जा, शुक्र, मूत्र, मल, स्वेद इनके.वहन करनेवालोंको स्रोत कहते हैं तथा वात, पित्त और कफ सम्पूर्ण शरीरमें गमन करानेषाले मार्गभूत भी