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विमानस्थान-अं०६.
(९६१) पृथंक गुण होनेपर भी दूषण करनेवाला गुण तीनों दोषोंमें समान होनेसे.एकदाप दूसरेको भी दूषित करलेताहै। अर्थात् दूषण स्वभाववाले होनेसे दोष एक दूसरक सहायक होजातेहैं और दूषण स्वभावसे समानगुणवाले होजातहे ॥ १०॥
अनुवन्ध्यानुबन्ध भेद । . . . ... तत्रानुबन्ध्यानुबन्धकृतोविशेषः स्वतन्त्रोव्यक्तलिङ्गोयथोक्त
समुत्थानप्रशमोभवत्यनुबन्ध्यस्तद्विपरीतलक्षणोऽनुबंधः ॥११॥ उनमें अनुवन्ध्य और अनुवन्धकी विशेषता यह है कि अनुबन्ध्य स्वतन्त्र और प्रकटलक्षणवाला होताहै और उसका प्रकट होना तथा शमन होना भी यथोक्त प्रकारसे होताहै अर्थात् स्वतन्त्र होताहै। और अनुबन्ध परतन्त्र तथा छिपेहुए लक्षण वाला होताहै । इसके समुत्थान और प्रशमन भी- पूर्वोक्त क्रमसे नहीं होते । तात्पर्य यह हुआ कि दूषित हुए वायुने अपने साथ, पित्तको भी दूषित करलिया । इस जगह वायु अनुवन्ध्य और पित्त अनुवन्ध होताहै । इसलिये वायु स्वतन्त्र और प्रकटलक्षणवाला तथा अपने कारणासे कुपित हुआ और वातनाशक द्रव्योंद्वारा शांतहोनेवाला होताहै । पित्त अनुबन्ध होनेसे परतंत्रादि गुणवाला जानना ॥११॥
सन्निपातादि दोष भेद । अनुबंध्यानुबंधलक्षणसमन्वितास्तत्रयदिदोषाभवंतितंत्रिकंसन्निपातमाचक्षतेद्वयंवासंसर्गम् । अनुवन्ध्यानुबन्धविशेषइतस्तुबहुविधोदोषभेदः। एवमेषसंज्ञाप्रकतोभिषजांदोषेषु चव्याधिषुचनानाप्रकृतिविशेषाद्वयूहः ॥१२॥ . .
यदि किसी ज्वरमें वात, पित्त, कफ अनुवन्ध्य तथा स्वतंत्र और प्रगट लक्षण वाले हों तो उन तीनों दोषोंके मिलापको सन्निपात कहा जाताहै यदि दो दोष स्वा तन्त्र होकर और प्रगट लक्षणोंद्वारा मिले हुएहों तो उनको संसर्ग कहतेहैं । इस कार अनुबन्ध्य और अनुबंध विषयके किये हुए रोगों के बहुत प्रकारके भेद होजातेहैं. इस तरह वैद्योंके कथन किये हुए संज्ञा और प्रकृतिके भेदसे दोषोंमें तथा व्याधि, योंमें अनेक प्रकारके भेद होजाते हैं ॥ १२ ॥
. अमिभेद । अग्निषुतुशरीरेषुचतुर्विधोविशेषोबलभेदेन। तद्यथा-तीक्ष्णोऽ१ दोपभेदविकारभेदमाभिधाय शरीरस्थिते. प्रधानकारणस्याग्ने दमाह अभिनित्यादि ।शरीरेष्विति सामान्यवचनेन सर्वशरीरगताननीन् ग्राहयति । विवरणे तु जठरामिरेव . : तीक्ष्णः सर्वापचारसह इत्यादिना यचातुर्विध्यमुक्त, तजठराग्मितीक्ष्णतादिमूलत्वगग्न्यादितीक्ष्णत्वादेरेवति शेयम् । वचन हि "तन्मूलास्ते हिं तपदिक्षयवृद्धिक्षयात्मका:" इति । तीक्ष्णःसर्वापचारसहत्वेन प्रधानम् ।
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