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विमानस्थान-अ०६.
(५६७) प्रकोपमापद्यते, नतथेतरौदोषौ ॥ २४ ॥ तदस्यप्रकोपमापन्नों यथोक्तैर्विकारैःशरीरमुपतपतिबलवर्णसुखायुषामुपघाताय॥२५॥ कफप्रधान मनुष्योंके शरीरमें-कफकोपकारक पदार्थोंके सेवनसे कफ शीघ्र प्रकोपको प्राप्त होजाताहै । उस प्रकार वात, पित्त नहीं होते। फिर इसके शरीरमें यह कोपको प्राप्त हुआ कफ अपने विकारों द्वारा शरीरको कष्ट देता है तथा बल, वर्ण सुख और आयुको भी नष्ट कर डालता है ।। २४ ॥ २५ ॥
तस्यावजयनम्-विधियुक्तानितक्षिणोष्णानिसंशोधनानिरूक्षप्रायाने णिचाभ्यवहार्याणिकटुतिक्तकषायोपहितानितथैवधावनलंघनप्लवनपरिसरणजागरणानियुद्धव्यवायव्यायामोन्मर्दनस्नानोत्सादनानिविशेषतस्तीक्ष्णानांदीर्घकालस्थितानांमद्यानामुपयोंगःसर्वशश्चोपवासस्तथोष्णवासासधूमपानःसुखप्रतिषेधश्चसुखार्थमेवेति ॥ २६ ॥ उस कफके जीतने के लिये अनेक प्रकारके विधिपूर्वक तीक्ष्ण और उष्ण संशोधनाशो करे और प्रायः रूक्ष पदार्थोंका तथा कटु, तिक्त, कषाय रसवाले द्रव्योंका सेवन करे । एवम् भागना, लंघन करना, उछलना, कूदना, परिसर्पण करना,जागना तथा कुश्ती, मैथुन, व्यायाम, मर्दन,स्नान और उत्सादन आदिका उपयोग करना विशेषतासे तीक्ष्ण और पुराने मद्यका सेवन करना, सब प्रकारसे उपवास करना गर्म स्थानों में रहना, गर्म वस्त्र पहनना, धूम्रपान करना, आलस्यके नष्ट करनेवाले. पदार्थोंका उपयोग करना चाहिये इनके कानेसे कफके विकार नष्ट होतेहैं ।। २६ ५.
अध्यायका उपसंहार ! भवतिचात्र । सर्वरोगविशेषज्ञः सर्वकाविशेषवित् ।
सर्वश्रेषजतत्त्वज्ञोराज्ञःप्राणपतिसंवेत् ॥ २७ ॥ यहांपर कहतेहैं कि,संपूर्ण रोगविशेपको जाननेवाला तथा संपूर्ण कार्य विशेषोंकों समझनेवाला एवम् संपूर्ण औषधियोंके तत्वको जाननेवाला वैद्य राजाओंका प्राणपति होताहै ॥ २७ ॥
१ श्लेष्माऽवजयनार्थ-रूक्षस्यव हितत्वेन रूक्षाणाति वक्तव्ये यक्षप्रायाणीति निगदितं तदत्यर्थरुक्षान्नस्य वातानुगुणत्वेन धात्वपोपकत्वेन चासेव्यत्वं दर्शयति ।