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विमानस्थान-अ०७.
(५७१) इसप्रकार व्याधितरूपीय अधिकारमें व्याधिके दो प्रकारके रूपोंकी संख्या, उनमें होनेवाला विषय, व्याधितरूपके कारण उनमें वैद्यके विप्रतिपन्न अर्थात् न समझनेके कारण साथही अपवादके स्वालित हानेके कारण एवम् योग्य वैद्यद्वारा निरपवाद चिकित्सा होनेके कारणोंको सुनकर आनिवेश आत्रेय भगवान्के दोनों चरणोंको पकडकर पूछनेलगे कि हे भगवन् शरीरमें होनेवाले सब प्रकारके कृमि योके निदान, स्थान, आकृति, वर्ण नाम और प्रभाव तथा चिकित्साका वर्णन कीजिये । यह सुनकर अग्निवेशके प्रति छात्रेय भगवान् कहनेलगे कि हे अग्निवेश! · सहज कृमियोंके सिवाय अन्य बीस प्रकारके कृमियोंका विभागपूर्वक अलग २ पहिले कथन करचुकेहैं ॥ ८ ॥
४ प्रकारके सहजकृाम। तपुनःप्रकतिमिसिंघमालाश्चतुर्विधास्तद्यथा-पुरीषजाःश्लेष्मजाःशोणितजामलजाश्चेति । तत्रमलोबाह्यश्चाभ्यन्तरश्च तत्र वाह्येमलेजातान्मलजान्संचमहे, तेषांसमुत्थानंजावर्जनं, स्थानकेशश्मश्रुलोलपक्ष्मवालासि,संस्थानमणवस्तिलाकतयोबहुपादावर्णस्तुकृष्णःशुक्लश्च नामानिचैषांयूकाःपिपीलिकाश्वेति:प्रभावकण्डूजननंकोठपिडकाभिनिर्वर्तनश्चचिकित्सितन्त्वेषामपकर्षणं मलोपघातोमलकराणाञ्चभावानामनुपलेवनमिति ॥९॥
उनमें सहज कृमि प्रकृतिभेदसे चार प्रकारके होतेहैं। जैसे पुरीषज, श्लेष्नज, .. शोणितज और मलज ।उनमें मल दो प्रकारका होताहै। एक बाह्यमल और द्वितीय
भीतरमिल उनमें वाहरके मलमें उत्पन्न होनेवाले कृमियोंका वर्णन करतेहैं वाहिरके कृषि उत्पन्न होनेका कारण शरीरको शुद्ध न रखना है अर्थात शरीरको शुद्ध न रखनसे बाह्यकृमि उत्पन्न होतेहैं। केश, इमच, लोम, पक्ष्म और वस्त्र यह वाह्य कृामयों के स्थान हैं । इनका आकार और स्वरूप बहुत छोटा और तिलके समान होताहै तथा वहुतसे पांवयुक्त और काले तथा मफेद वर्णके होतेहैं । नाम इनके यूका और पिपीलिका होतेहैं । यह कृमि खुजली, चकत्ते और फुसियोंको उत्पन्न करतेहैं यही इनका प्रभाव है । यल इनका कंघी आदिसे खींचकर निकालदेना, शारीरिक मैलको दूर करना मलके उत्पन्न करनेवाले उपयोगोंको नहीं करना यही इनकी चिकित्सा है आमलोग इनको जूआं और लीख कहते हैं ॥९॥