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विमानस्थान-अ०६.
(५५९) नहीं हो सकता क्योंकि जिस प्रकार रोग संख्यय और असंख्येय होते हैं उनका वर्णन प्रथम करचुके हैं इसलिये इसस्थानमें कोई विरोधी दोष उत्पन्न नहीं होसकता। भेद करनेवाला अपनी इच्छासे एक वस्तुको एक प्रकारका कथन कर दूसरे समय उसी वस्तुके अनेक भेद दिखा सकता है। और 'प्रकारान्तरसे भेद संख्याको अनेक प्रकारकी करते हुए प्रथम कथन किये हुए एक प्रकारके भेदमें किसी प्रकारकी आपत्ति नहीं होने देता ॥३॥ , समानायामपिखलुभेदप्रकृतोपकतानुपयोगान्तरमपेक्ष्यसन्ति ।
ह्यर्थान्तराणिसमानशब्दाभिहितानि । समानोहिरोगशब्दो- . दोषेषुव्याधिषुचवर्त्तते । दोषाअपिरोगशब्दमातङ्कशब्दयक्ष्मशब्दंदोषप्रतिशब्दविकारशब्दञ्चलभन्ते । तत्रदोषेषुचैवव्याधिषुचशेगशब्दःसमानःशेषेषुतुविशेषवान् ॥ ४॥
भेदके कारणके समान होनेपर भी कहीं कहीं प्रयोगान्तरकी अपेक्षा करते हुए समान शब्दसे कहे :हुए शब्दोंके अथ अलग २ ग्रहण किये जाते हैं । जैसे-रोग शब्दसे दोष और व्याधि इन दोनोंकाही वोध होता है अर्थात् रोगशब्द. दोषों और व्याधियोंमें सामान्यरूपसे व्यापक है। दोषभी रोगशब्द, आतंकशब्द, यक्ष्मशब्द, दोष प्रकृति शब्द एवम् विकार शब्दसे ग्रहण किये जातेहैं। इनमें रोगशब्द दोषोंमें तथा व्याधियोंमें समान है और अन्य स्थलों में विशेष अर्थात् असमान होताहै ४
तत्रव्याधयोऽपरिसंख्येयाभवन्त्यतिबहुत्वादोषास्तुपरिसंख्येया "अनतिबहुत्वात्तस्माद्यथोचितविकाराउदाहरणार्थमनवशेषेणच .. : दोषाव्याख्यास्यन्ते ॥५॥.. . . .
इनमें व्याधियें “अपरिसंख्येय 'अर्थात् 'अगण्य होती हैं क्योंकि वह बहुत तथा अंशांश कल्पना द्वारा अत्यंत ही बहुत हैं परंतु दोष संख्यावान हैं क्योंकि यह बहुत : .. नहीं हैं । इसलिये उदाहरणके लिये विकारोंको तथा दोषोंको विस्तारपूर्वक वर्णन ____ करते हैं ॥६॥........ ....... .. . ..
:: ' दोषोंका वर्णन :- . . . . . . रजस्तमश्चमान सौदोषी,तयोर्विकाराःकामक्रोधलोभमोहा. मानमदशाकचित्तौद्धगभयहर्षादयः॥६॥ . . . . . .... • रजोगुण और तमोगुण मनके दोष हैं ।काम, क्रोध, लोभ,मोह, ईर्षा, अभिमान,