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वाताव
विमानस्थान अ०६.. (९५७)
तत्र श्लोकाः। त्रयोदशानामूलानिस्रोतसांदुष्टलक्षणम् । सामान्यनामपर्यायाःकोपनानिपरस्परम् ॥ ३४॥ दोषहेतुःपृथकूत्वेनभेषजोद्देशएंव च। . . ...
स्रोतोविमाननिर्दिष्टस्तथाचादौविनिश्चयः॥३५॥ ... अब मध्यायकी पूर्ति श्लोक कहते हैं कि इस स्रोतोविमान नामक अध्यायमें तेरह स्रोतोंके मूल, उनके दृषित होनेके लक्षण, सामान्यनाम, पर्यायवाचक शन्द, परस्पर कोपक्रम, पृथकू २ दोषोंके हेतु और औषध उद्देश तथा स्रोतोंका निधन इनका वर्णन कियागया है ॥ ३४ ॥ ३५ ॥
केवलंविहितंयस्यशरीरंसर्वभावतः.। .
शारीराःसर्वरोगाश्चसकर्मसुनमुह्यति ॥ ३६ ॥ इति चरकसंहितायां विमानस्थाने स्रोतोविमानम्। जिस वैद्यको संपूर्ण भावोंसे शरीरका ज्ञान है तथा शरीरके संपूर्ण रोगोंको जानवा है वह वैद्य चिकित्सा क्रममें मोहको प्राप्त नहीं होता ॥ ३६ ॥ इति श्रीमहर्षि चरक० विमानस्थाने भाषाटीकायां स्रोतोदिमानं नाम पञ्चमोऽध्यायः॥५॥
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षष्ठोऽध्यायः।
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अथातो रोगानीकं विमानव्याख्यास्याम इति हस्माह.भगवानात्रेयः।.
अब हम रोगानीक विमानकी व्याख्या करते हैं । इस प्रकार भगवान् मात्रै बजी कथन करनेलगे।
. . . . . रोगों के विभाग। द्वेरोगानभिवतःप्रभावभेदेनसाध्यश्चासाध्यञ्च, देरोगानीके बलभेदेनमृदुचदारुणञ्च,ढेरोगानीके अधिष्ठानभेदेनमनोऽधिः ठानंशरीराधिष्ठानञ्च, रोगानीकेटेनिमित्तभेदेनस्वधातुवैषम्य
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