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विमानस्थान - अ० ५.
स्रोतांसिस्रोतांस्येव धातवश्चधातूप्रदूषयन्ति ॥ १३ ॥
एक धातु दूषित होकर दूसरी धातु दूषित करदेती है स्रोत दूषित होकर अन्य स्रोतों को भी दूषित कर देते हैं ॥ १३ ॥
प्रदुष्टास्त्वेषां सर्वेषामेववात पित्तश्लेष्माणोदुष्टादूषयितारोभवन्तिदोषस्वभावादिति ॥ १४ ॥
वात, पित्त कफ दूषित होकर इन सब स्रोतोंको अपने दोष स्वभावसे दूषित करदेते हैं ॥ १४ ॥
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प्राणवाही स्रोतोंके दूषित होनेका कारण । भवतिचात्र । क्षयात्सन्धारणाद्रौक्ष्याद्वधायामात्क्षुधितस्यच । प्राणवाहीनिदुष्यन्तिस्रोतांस्यन्यैश्चदारुणैः ॥ १५ ॥
सोई कहते हैं । प्राणोंको वहन करनेवाले स्रोत - धातुओं के क्षीण होनेसे, वेगोंको धारण करनेले, रूक्षतासे, अधिक परिश्रम करनेसे, बहुत क्षुधा लगनेसे तथा अन्य दुष्ट कारणोंसे दूषित होतेहैं ॥ १५ ॥
उदकवाही स्रोतोंके दूषित होनेका कारण । औष्ण्यादामाद्भयात्पानादतिशुष्कान्नसेवनात् । अम्बुवाहीनिदुष्यन्तितृषायाश्चातिपीडनात् ॥ १६ ॥
उष्णतासे, आमदोषसे, भयसे, मद्य आदि पीनेसे, अधिक शुष्क अन्न सेवनसे, अत्यन्त प्यास लगने से जलके वहन करनेवाले स्रोत दूषित होते हैं ॥ १६ ॥ अन्नवाही स्रोतोंके दूषित होनेका कारण । अतिमात्रस्य चाकाले चाहितस्यचभोजनात् । अन्नवाहीनिदुष्यन्तिवैगुण्यात्पावकस्यच ॥ १७ ॥
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अधिक भोजन करनेसे, वेसमय भोजन करनेसे विषम भोजन करनेसे, अहित भोजन करनेसे, जठरानिकी विगुणतासे अन्नके वहन करनेवाले स्रोत दूषित होते हैं ॥ १७ ॥
रसवाही स्रोतोंके दूषित होनेका कारण।
गुरुशीतमतिस्निग्धमतिमात्रनिषेवणात् । रसवाहीनिदुष्यन्तिचिन्त्यानाञ्चातिचिन्तनात् ॥ १८ ॥