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(५४४) चरकसंहिता-भा० टी०॥ नक्षयसमन्वितमेवमुदकमेवनामानभेवंयोगविद्यात्। तस्मिन्नियंप्रतीकाराप्रवृत्तिरथवानिवृत्तिरित्युपदेशाज्ज्ञायते ॥५॥ उपरोक्त तीनों प्रमाणोंमेंसे एकही प्रमाण द्वारा सम्पूर्ण रोगोंका ज्ञान नहीं हो सकता इसलिये इन तीन प्रकारके ज्ञानसमुदायमें व्याधिको प्रथम आप्तोपदेश द्वारा जानना चाहियोउसके अनन्तर प्रत्यक्ष और अनुमान द्वारा परीक्षा उपपन्न होती है। तात्पर्य यह हुआ कि, वैद्यक परीक्षा शास्त्रमें पहिले आप्तोपदेश द्वारा व्याधि तथा द्रव्योंके प्रभावको जानकर पीछे प्रत्यक्ष और अनुमान द्वारा निश्चय करना चाहिये। यदि मानुषी बुद्धिके कारण प्रथम ही प्रत्यक्ष और अनुमान द्वारा द्रव्योंकी तथा व्याधियोंकी परीक्षा कीजायगी तो अनेक मनुष्योंके प्राणोंका घात होना संभव है जैसे कोई तत्काल प्राणहारक विषोंको लेकर उससे प्रत्यक्षानुमानकी सिद्धि करना चाहे तो जिस प्राणीपर उसकी परीक्षा कीजायगी उसकी हिंसाका भार वैद्यपरही होगा । इसलिये वैद्यक शास्त्रमें प्रथम आप्तोपदेश द्वारा ज्ञेय विषयको जानकर तदनन्तर प्रत्यक्ष और अनुमानसे जानलेना चाहिये । अव शंका करते है कि जिस विषयको प्रथम आप्तोपदेश द्वारा नहीं जाना है उसको प्रत्यक्ष और अनुः मानसे भी जानसकेतहैं कि नहीं सो क तेहैं कि जिस पदार्थके ज्ञानके लिये प्रथम आतोपदेश नहीं हुआहै उसको प्रत्यक्ष और अनुमान द्वारा जानना चाहिये । इस लिये बुद्धिमान् मनुष्योंने प्रत्यक्ष और अनुमान दो प्रकारकी परीक्षा मानी है । उन दोनोंमें आप्तोपदेश मिलादनेसे परीक्षा तीन प्रकारकी होतीहै परन्तु वैद्यक शास्त्रमें प्रत्यक्ष और अनुमान, आप्तोपदेशका आश्रय लेकर ही प्रवृत्त होताहै । सो बुद्धि: मान् यहां इसमकार उपदेश करतेहैं कि प्रत्येक रोग इस प्रकार होताहै उनके यह २ लक्षण होते हैं । दोषोंका प्रकोपन इस प्रकार होताहै । रोगोंके.कारण इस प्रकार होतेहैं । वातादिकोंके तथा ज्यरादिकोंके स्वरूप इसप्रकार के होते हैं । अधिष्ठान इसको कहते हैं । शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध इस प्रकारके होते हैं । उपद्रव इनको कहतेहैं । दोषोंकी तथा रोगोंकी वृद्धि इसप्रकार होता है । दोष साम्यावस्थामें इस प्रकार रहतेहैं।धातु आदि क्षीण इसप्रकार होते हैं रोगोंका उत्तरकाल इस प्रकारजानना रोगोंका नाम इस प्रकार जानाजाताहै। रोगके जाननेका यह प्रकार है ऐसे स्थानमें । चिकित्सा करनी चाहिये अथवा नहा करनी इत्यादि सब ज्ञान आप्तोपदेशसेही होतेहैं । इसलिये वैद्यको प्रत्यक्ष और अनुमान आप्तोपदेशको पूर्व लिये विना चलही नहीं सकता ॥ ५॥ . .
. प्रत्यक्षज्ञानका लक्षण ।.. प्रत्यक्षतस्तुखलुरोगतत्त्वंबुभुत्सुःसरिन्द्रियःसर्वानिन्द्रियार्था- ....