________________
। विमानस्थान - अ० १.
'(488')
रानिकी गर्मी में किसी प्रकारका विघ्न न करके परिपाकको प्राप्त होजाता है । इसालय - भोजन उचित मात्रासे करना चाहिये ॥ २९ ॥
जीर्णभोजन में भोजन के गुण ।
जीर्णेऽश्नीयात् । अजीर्णेहिभुञ्जानस्य पूर्वस्याहारस्यरसमपरिणतमुत्तरेणाहाररसेनोपसृजन्सर्वान् दोषान्प्रकोपयत्याशु । जीतु भुञ्जनस्यस्वस्थानस्थेषुदोषेषु अग्नौ चोदीर्णे जातायाञ्चबुभुक्षायांविवृतेषुच स्रोतसांमुखेषुचोद्गारेविशुद्धेहृदयेविशुद्धेवातानुलोम्येविसृष्टेषुचवातमूत्रपुरीषवे गेषुजीर्णमभ्यवहृतमाहारजातसर्वशररिधातून प्रदूषयदायुरवाभिवर्द्धयति केवलम् । तस्माजीर्णेऽश्नीयात् ॥ ३० ॥
प्रथम दिनका आहार जीर्ण होजानेपर तव भोजन करना चाहिये । अजीर्णमें भोजन करनेसे अर्थात् पाहिले किये हुए आहारका रस शरीरंमें यथोचित रीतिपर पचजाने के बिना भोजन करनेसे उस दूसरे आहारके साथ मिलकर दोषोंको कुपित करता है । और पहिला भोजन पचजानेपर फिर भोजन कियाजाय तो दोष अपने २ स्थानों में स्थित रहते हैं। अग्नि चैतन्य होकर भूख लगाती है और नाडियोंके मुख शुद्ध - होकर डकार शुद्ध आती है । हृदय शुद्ध रहता है । वायुका अनुलोम होता है । वात, मूत्र, मल ये अपने समयपर ठीक निकलते हैं । वह आहार यथोचित रीतिपर जीर्ण ' होकर धातुओंको दूषित न करता हुआ केवल आयुको बढाता है ॥ ३० ॥ वीविरुद्ध भोजनके गुण । वीर्य्याविरुद्धमश्नीयात्। अविरुद्धवीर्य्यमश्ननहिनविरुद्धवीर्य्याहारजैर्विकारैरयमुपसृज्यते तस्माद्वीर्य्याविरुद्धमश्नीयात् ॥ ३१ ॥
अविरुद्ध वीर्यवाले. पदार्थों का सेवन करना चाहिये । अविरुद्ध वीर्यवाले पदार्थोंके खानेसे जो विकार विरुद्धवीर्य आहारसे उत्पन्न होते हैं वह नहीं होते। इसलिये विरुद्धवीर्य पदार्थों को न खाना चाहिये ॥ ३१ ॥
इष्टदेशमें भोजन का गुण ।
इष्टदेशेऽश्नीयात् । इष्टेहि देशेभुआनोनानिष्टदेशजैर्मनोवि - घातकरैर्भावैर्मनोविघातं प्राप्नोतितथेष्ठैः सर्वोपकरणैस्तस्मादिष्टे -देशेतथेष्टसवपकरणञ्चाश्नीयात् ॥ ३२ ॥
1