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चरकसंहिता-भा० टी०। भिष्यन्दिनमतिभैरवारावमतिप्रतिहतपरस्परगतिमतिकुण्डलिनमसात्म्यगन्धबाष्पसिकतापांशुधूमोपहतमिति ॥६॥ उनमें इस प्रकारका वायु होनेसे व्याधियोंके उत्पन्न करनेवाला जानना । जैसे विकृत ऋतुके गुणोंसे मिलाहुआ, अत्यन्त गीला, अत्यन्त वेगयुक्त, अति कठोर, अत्यन्त शीतल, अधिक गर्म, अत्यन्त रूक्ष, क्लेदकारक, अतिभयंकरशब्दयुक्त, दो तीन तरफसे वायु मिलकर टक्कर खानेवाला,अत्यन्त चक्कर खानेवाला,जिसकी गंधसे लोगोंके शरीरमें विकार उत्पन्न हों एवम् भाफ, सिकता, धूल, गर्दा,चूंआं आदिसे 'मिलाहुआ वायु विकारयुक्त होताहै ॥ ६॥
जलको अनारोग्यत्व। उदकन्तुखलुअत्यर्थविकृतगन्धवर्णरसस्पर्शवक्केदबहुलमपक्रान्तजलचरविहङ्गमुपक्षीणजलाशयमप्रीतिकरमपगतगुणं वि. . द्यात् ॥७॥ जल इस प्रकारका रोगकारक होताहै । जैसे दुर्गंधयुक्त विकृतवर्णवाला और जिसका रस तथा स्पर्श बुरा हो,गिलगिला जिसको जलचर पक्षियोंने त्याग दियाहो तथा जिसका जल सूख गयाहो, एवम् जिसका जल हानिकारक हो अथवा जिसके समीप जानेसे चित्त खराब होजाय और जलके गुणोंसे रहित हो ऐसे जलको रोगकारक जानना चाहिये ॥ ७॥
देशको अनारोग्यत्व । देशंपुनःविकृतप्रकृतिवर्णगन्धरससंस्पर्शक्लेदबहुलमुपसृष्टंसरीसृपव्यालमशकशलभमक्षिकामूषकोलूकश्माशानिकशकुनिजम्बुकादिभिस्तृणोलूपोपवनवन्तंप्रतानादिबहुलमपूर्ववदवपतितंशुष्कनष्टशस्यंधूम्रपवनंप्रध्मातपतत्रिगणमुत्कुष्टश्वगणमुद्मान्तव्यथितविविधमृगपक्षिसंघमुत्सृष्टनष्टधर्मसत्यलज्जाचारगुणजनपदंशश्वरक्षाभतोदीर्णसलिलाशयंप्रततोल्कापातनिर्घातभूमिकम्पमतिभयारावरूपंरूक्षताम्रारुणसिताम्रजालसंवृतार्कचन्द्रतारकमभीक्ष्णंलम्धमोद्वेगमिव सत्रासरुदितमिवसतमस्कमिवगुह्यकाचरितमिवाक्रन्दितशब्दबहुलञ्चाहितंविद्यात् ॥८॥