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विमानस्थान-अ०३. मपक्रान्तदेवतानामृतवाव्यापद्यन्ते । तेननापोयथाकालंदेदो वर्षति । विकृतवावतिवातानसम्यगभिवान्तिक्षितिापद्यतेसलिलानिउपशुष्यन्ति। ओषधयःस्वभावंपरिहायापद्य
न्तविकृतिम् । ततउद्ध्वंसन्तेजनपदास्पास्यवहार्यदो : षात् ॥ २५॥
वह वृद्धिको प्राप्तहुआ तथा सर्वतः फैलाहुआ अधर्म,धर्मको छिपादेताहै अर्थाद नष्टप्राय बनादताहै। तब उन लोगोंको धर्मरहित जानकर और अधर्म प्रधान होनेसे उस देशके रक्षक देवतागण उस देशको त्याग जाते हैं फिर उन धर्मरहित और अधर्मप्रधान तथा देवताओंसे त्यागेहुए देशोंमें ऋतुएं विकृत होजाती हैं। तब ऋतु: ओंके विकृत होनेसे इन्द्रदेव समयपर वृष्टि नहीं करते अथवा वर्षाकालसे आगे पीछे या विकृतरूपसे वृष्टि होतीहै और वायु भी हितकारक शुभगतिवाला नहीं रहता। पृथ्वी दोषयुक्त होजातीहै, जलाशय सूख जाते हैं,जड़ी बूटीआदि अपने स्वभावकों छोडकर विकारयुक्त होजाती हैं । तब इन सबके विकृत होनेसे मनुष्योंमें रोग उत्पन्न होते हैं और परस्पर संसर्ग और अन्नपान आदि संसगाँसे वह रोग देशम फैलकर समस्त लोगोंको नष्ट करते हैं ॥ २५ ॥
. युद्धका कारण। तथाशस्त्रप्रभवस्यआपजनपदोसस्यअधएवहेतुर्भवति । येतिवृद्धलोभकोधरोषमानास्तेदुर्बलानवमत्यआत्मस्वजनप.. रोपघातायशस्त्रेणपरस्परमभिकामन्तिपरान्वाभिक्रामन्तिपरैवाभिक्राम्यन्तरक्षोगणादिभिर्वा विविधैर्भूतसङ्कुस्तमधर्ममन्यद्वाप्यपचारान्तरमुपलभ्याभिहन्यन्ते ॥ २६ ॥ तथा राजाओंमें परस्पर शस्त्रयुद्ध होना भी जनपदोध्वंसन कहाजाताहै उसका कारण भी अधर्म ही होताहै।जब मनुष्योंमें लोभ,क्रोध, रोष और अभिमान बहुत बढजाताहै तब वह दुर्वल मनुष्योंका,गरीवोंका, निरपराधोंका अपमान करनेलगते हैं फिर वह अधर्मी लोग अपने और परायेको कुछ न समझकर लोभ और अहंकाः रसे अंधे वनेहुए शस्त्रादिकोंसे उनको मारनेके लिये परस्पर आक्रमण करतेहैं और दूसरोंको मारनेके लिये आक्रमण करतेहैं । तथा उनके ऊपर अन्य मनुष्य भी उसी प्रकार आक्रमण करते हैं । ऐसे समय अनेक प्रकारके भूत, प्रेत, राक्षस आदि भी उन अधर्मके.आचरण करनेवालोंको जहां. पाते नष्टभ्रष्ट कर.डालते हैं ॥ २६ ॥
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