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विमानस्थान-अ० ३.
(५२७) जिन मनुष्योंके मृत्युसाम्य (पूर्णायु होकर आवश्यकीय मृत्यु काल ) नहीं है एवम् किसी मारक विष आदिका प्रयोग आदि कोई मारक कर्म उपस्थित नहीं है उनको रोगशान्तिके लिये पंचकर्म द्वारा चिकित्सा करना परम उत्तम औषध कहा है ॥ १६ ॥
रसायनानांविधिवच्चोपयोग प्रशस्यते।
शस्यतेदेहवृत्तिश्चभेषजैःपूर्वमुद्दतैः॥ १७ ॥ ऐसे समयपर जव कि जनपदोध्वंसनकारी भाव दिखाई पडे तो कोई उत्तम रसायन औषधीका (लाक्षादि तैलकी नित्य मालिश, विडंगरसायन, च्यवनप्राश आदि २) सेवन करना चाहिये । तथा जनपदोध्वंसनकारी भावोंके होनेसे प्रथम संग्रहकियेहुए औष|द्वारा और हितकर अन्न आदि द्वारा देहकी रक्षा करता रहे१७
सत्यंभूतदयादानबलयोदेवतार्चनम् । सदृत्तस्यानुवृत्तिश्चप्रशमोगुप्तिरात्मनः ॥ १८॥ हितंजनपदानाञ्चशिवानामुपसेवनम् । सेवनंब्रह्मचर्यस्यतथैवब्रह्मचारिणाम् ॥ १९ ॥ सङ्कथा 'धर्मशास्त्राणांमहर्षीणांजितात्मनाम् । धार्मिकैःसात्त्विकैर्नित्यं सहास्यावृद्धसम्मतैः॥२०॥ इत्येतद्भषजंप्रोक्तमायुषःपरिपालनम् । येषांननियतोमृत्युस्तस्मिन्कालेसुदारुणे ॥ २१ ॥ जब जनपदके उध्वंसनकारी भाव उत्पन्न होते दिखाई दें अथवा उत्पन्न होजाय तब मनुष्योंको अपनी शरीर रक्षाके लिये एवम् कुटुम्बसम्बन्धी तथा देशकी रक्षाके लिये जो यत्न करना चाहिये उनका वर्णन करतेहैं । वह ये हैं-सत्य भाषण, जीव. मात्रपर दया, दान, देवताओंके अर्पण वली देना, देवताओंका पूजन करना, श्रेष्ठ आचरणका धारण करना, मंत्र पाठादिकोंसे अपनी आत्माको रक्षित रखना, देशके हितकारक मंगलाचरण करना, अथवा शिवजीका पूजन करना, ब्रह्मच.
र्यका पालन एवम् अथवा उस देशको त्यागकर अन्य शुभदेशमें रहना, उत्तम : शास्त्रोंकी धर्मसंबंधी कथाओंको सुनना । महर्षि महात्मा तथा ऋषियोंके उपदेश । श्रवण करना, धर्मात्माओं, सत्पुरुषों तथा वृद्धजनोंकी आज्ञानुसार नित्य आचरण
करना और उन्हीं महात्माओंके पास निवास करना यह सब जनपदोध्वंसनके समय -मनुष्योंको आयुके देनेवाले परम औषधियोंका कथन किया है। उस दारुण कालमें जिनकी आवश्यकीय नियत मृत्यु नहीं है उनके लिये उपरोक्त कर्मोंका सेवन आयुवर्द्धक और परमहितकर होताहै । तथा अकालमृत्युसे बचानेवाला होता है ( मरणासन्न मनुष्योंको परलोकमें हितकर होता है )॥१८॥१९॥२०॥२१॥