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चरकसंहिता - भा० टी० ।
नियतस्यायुषो हेतुर्विपरीतस्यचेतरा | मध्यमामध्यमस्येष्टाकारणंशृणुचापरम् ॥ ४१ ॥
यह तो हुआ आयुके सौवर्षका प्रमाण । और इससे विपरीत अर्थात् देव और पुरुषकारके हीनवल होनेसे मनुष्यों की आयु भी अल्प होती है। देव और पुरुषकार मध्यम होनेसे आयु भी मध्यम होती है । अव देव और पुरुषकार में भी विशेषताको श्रवण करो ॥ ४१ ॥
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आयुके नियता नियतपर विचार |
दैव पुरुषकारेण दुर्बलघुपहन्यते ॥ दैवेन चेतरत्कर्म्मविशिष्टेनोपहन्यते ॥ ४२ ॥ दृष्ट्ायदेकेमन्यन्तेनियतंमानमायुषः । कर्म किंञ्चित्क्वचित्कालविपाकेनियतं महत् । किञ्चित्वकालनियतं प्रत्ययैः प्रतिवोध्यते इति ॥ ४३ ॥
यादे दैव दुर्बल हो और मनुष्यका कियाहुआ यह लौकिक कर्म (पुरुषकार ) बलवान् हो तो पुरुषकार दैवको नष्ट कर देता है। यादे दैव बलवान् हो और पुरुष - कार दुर्बल हो तो दैव (प्रारब्धकर्म ) पुरुषकारको नष्ट कर देता है ॥ ४२ ॥ यह देखकर कोई कहते हैं कि आयुका प्रमाण विधाताने जिसका जैसा नियत कर दिया है ही आयुका प्रमाण है । कोई कहते हैं कि आयुका प्रमाण कर्माधीन है । जब किसी महाफल कर्मका विपाकका समय आता है वही आयुका नियत प्रमाण हैं कोई कहते हैं कि आयुका नियत समय नहीं होता क्योंकि कोई किसी अवस्थामें कोई किसी अवस्थामें मृत्युको प्राप्त होता है। कोई भी नहीं इस प्रकारका महाफल कर्मही आयुका कारण प्रतीत होता है ॥ ४३ ॥ तस्मादुभयदृष्टत्वादेकान्तग्रहणम साधुनि दर्शनमपिचात्रउदाहरिष्यामः । यदिहिनियतकालप्रमाणमायुः सर्वस्यात्तदायुष्कामाणांनमन्त्रौषधिमणिमङ्गलबल्युपहारहोमनियमप्रायश्चित्तो
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पवासस्वस्त्ययनप्रणिपातगमनाद्याः क्रियाइष्टयश्चप्रयुज्येरन् ॥ ४४॥
इसलिये इन सब पक्षोंको देखकर विना प्रमाण किसी एकको मानलेना अन्याय है सो सव प्रमाण निश्चयात्मक आयुके विषयका उदाहरण देकर कथन करते हैं । यदि विधाताका रचाहुआ ही प्रत्येक व्यक्तिकी आयुका प्रमाण नियत है तो संपूर्ण . आयु की कामनावाले मनुष्यको मंत्र, औषधी, माण, मंगलकर्म, वलिदान, उपहार, होम, नियम, प्रायश्चित्त, उपवास, स्वस्त्ययन, नम्रता, शुभ आचरण आदि करनेकी