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चरकसंहिता-भान्टी। इसीप्रकार अन्य व्याधियोंमें भी कारणसे विपरीत औषधादि द्वारा चिकित्सा करनी चाहिये ॥ ६॥
तथातर्पणनिमित्तानामापिव्याधीनांनान्तरेणपूरणमस्तिशान्तिस्तथापूरणनिमित्तानांनान्तरेणापतर्पणम् ॥ ६१॥ ।
जैसे अपतर्पणसे उत्पन्न हुए रोगोंकी तर्पणके विना शान्ति नहीं हो सकती । 'तर्पणसे उत्पन्न हुए रोगोंकी अपतर्पणके विना शान्ति नहीं होसकती ॥ ६१ ॥
अपतर्पणके भेद। अपतर्पणमपिचत्रिविधंलंघनलंघनपाचनंदोषावसेचनश्चेति ॥ तत्रलंघनमल्पदोषाणाम् । लंघनेनह्यग्निमारुतवृद्धयावातातपपरीतमिवाल्पमुदकमल्पदोषःप्रशोषमापद्यते ॥ ६२ ॥ तर्पणके तीन भेद हैं-लंघन और लंघन पाचन तथा दोषावसेचन इनमें अल्पदोषवाले मनुष्यको लंघन कराना चाहिये । लंघनके करनेसे जठराग्नि और वायुकी वृद्धि होकर जैसे-पवन और धूपके योगसे अल्पजल सूख जाता है उसी प्रकार अल्पदोष शोषणको प्राप्त होजाते हैं अर्थात् नष्ट होजाते हैं ॥ ३२॥
लंघनपाचनके गुण। लंघनपाचनाभ्यांमध्यबलासूर्यसन्तापमारुताभ्यांपांशुभस्मावकिरणरिवचानतिबहूदकंमध्यदोषः प्रशोषमापद्यते ॥ ६३ ॥
यदि दोष मध्यबल हो तो उसको लंघन पाचन कराना चाहिये। जैसे सूर्यके संतापसे और वायुके वेगसे तथा गर्दा, मिट्टीआदि डालनेसे मध्यमजल सूखजाता है वैसेही लंघन और पाचन द्वारा मध्यम दोष भी शोषण होजाते हैं ।। ६३ ।।
दोषावसेचनके गुण । बहुदोषाणांपुनर्दोषावसेचनमवकार्य्यम्। नाभिन्नेकेदारसेतो पल्वलप्रसेकोऽस्ति । तद्वदोषावसेचनमादोषावसेचनन्तुखल अन्यद्वाभेषजंप्राप्तकालमप्यातुरस्यनैवंविधस्यकुर्यात् ॥६॥ बढे हुए दोषोंमें दोषावसेचन अर्थात् वमनादि द्वारा विधिपूर्वक दोषोंको निकाल देना चाहिये । जैसे किसी खतमें बहुतसा जल इकट्ठा हों एक तरफसे खेतकी डौल( सीमा) तोड देनेसे वह जल सब बाहर निकलजाता है। उसी प्रकार दोषा. बसेचन द्वारा दोषों को निकाल डालना चाहिये । परन्तु यह दोषावसेचन वा अन्य