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विमानस्थान-अ० २. उसके अनन्तर स्वेदन तथा बस्ति प्रयोगद्वारा चिकित्सा करे और लंघन करावे१६
विषूचिकादि आमदोषको चिकित्सा । विषूचिकायान्तुलंघनमेवाग्रेविरिक्तवच्चानुपूर्वी ॥ १७॥ विसूचिकामें तो प्रथम लंघन करानाः चाहिये और तदनन्तर जैसा विरेचन होजानपर विरिक्त मनुष्यकी क्रिया कीजातीहै उसी प्रकार क्रमपूर्वक चिकित्सा करनीचाहिये ॥ १७ ॥
आमप्रदोषेषुत्वनकालेजीर्णाहारंपुनदोषावलिप्तामाशयस्तिमितगुरुकोष्ठमनन्नाभिलाषिणमभिसमीक्ष्यपाययेदोषशेषपाचनार्थमौषधमग्निसन्धुक्षणार्थञ्चनत्वजीर्णाशनम् । आमप्रदोषदुर्वलोह्यग्निर्युगपदोषमौषधमाहारजातञ्चाशक्तःपक्तुम् ॥१८॥ आमके दूषित होनेपर प्रथम लंघन कराना चाहिये। लंघनद्वारा अन्न जीर्ण होनेपर याद फिर भी ऐसा देखे कि आमाशयमें दोष लिपायमान है. तथा कोष्ठ क्लेदयुक्त है एवम् भारी है तथा अन्नमें रुचि भी नहीं है तो शेष दोषोंके पाचन करनेके. लिये तथा अग्निको चैतन्यं करनेके लिये पाचन औषधी देवे। परन्तु आमयुक्त अजीर्णमें पाचन औषध देनेकी आवश्यकता नहीं है । क्योंकि आमदोष बलवान् होताहै । उस वढेहुए आमदोषको दुर्वल अग्नि तथा औषधी पाचन नहीं कर; सकती ॥ १८॥
अपिचामप्रदोषाहारौषधविभ्रमोऽतिबलत्वादुपरतकायानि सहसैवातुरमबलमभिपातयेत् ॥ १९ ॥ आम, दोष, आहार, औषध,इनका विभ्रम बलवान होनेसे क्षीणाग्निवल मनुष्यको शीघ्र नष्ट करडालतेहैं इसलिये अजीर्ण में अग्निकी चैतन्यता करनी चाहिये केवल पाचन औषध न देवे ॥ १९ ॥
आमप्रदोषजानांपुनर्विकाराणामपतपणेनैवोपरमोभवति । सतित्वनुबन्धेकृतापतर्पणानांव्याधीनांनिग्रहनिमित्तविपरीतमपास्यौषधमातङ्कविपरीतमेवावचारयेत् । यथास्वंसर्वविका• राणामपिचनिग्रहहेतुव्याधिविपरीतमौषधमिच्छन्तिकुशलाः२०॥
आमदोषसे उत्पन्नहुए रोग अपतर्पण क्रिया द्वारा शान्त होतेहैं। यदि अपतर्पण करने पर भी आमदोषजनित विकार वाकी रहजाय तो रोगके नाश करनेवाले यल