________________
विमानस्थान-अ० ३.
(५२१० भामाशय है उस आमाशयमें ही-भक्ष्य, भोज्य,चोष्य,लेह, यह सव पदार्थ परि पांकको प्राप्त होते हैं। आमाशयमें आहार पाहले परिपाकको प्राप्त होकर फिर धम नियोंद्वारा उसका रस संव आशयोंमें पहुंच जाता है ॥ २४ ॥ २५ ॥
तस्यमात्रावतोलिङ्गंफलञ्चोक्यथायथम् अमात्रस्यतथालिङ्गं फलञ्चोक्तविभागशः॥ २६॥ आहारविध्यायतनानिचाष्टौसम्यकपरीक्ष्यात्महितंविदध्यात् । अन्यश्चयःकश्चिदिहास्तिमागोंहितोपयोगेषुभजेततञ्च ॥ २७ ॥ इति आग्निवेशकृतेतन्त्रेचरकप्रतिसंस्कृतेविमानस्थानेत्रिविध
कुक्षीयं विमाननामद्वितीयोऽध्यायः ॥२॥ इस प्रकार मात्रासे भोजन करनेवालोंके लक्षण और फल कथन करदिये गये हैं इसी प्रकार विना मात्रास भोजन कियेके लक्षण और फल भी यथाक्रम कथन किये गये हैं ॥ २६ ॥ सो बुद्धिमान् मनुष्यको चाहिये कि, आहारविधिके आठ आयतनोंको भले प्रकार परीक्षा करके अपनी आत्माके हितके लिये साधन करना चाहिये । इसके सिवाय अपनी आत्माके हित करनेवाले अन्य भी जो हितकारक मार्ग हों उनका सेवन करना चाहिये ॥२७॥ इति श्रीमहार्पचरक० पं०रामप्रसादवैद्य० भाषाटीकायां त्रिविधकुक्षीयो
नाम द्वितीयोऽध्यायः ॥२॥
तृतीयोऽध्यायः ।
अथ जनपदोद्ध्वंसनीयमध्यायंव्याख्यास्यामइति हस्माह
भगवानात्रेयः। अब हम जनपदोध्वंसनीय विमानाध्यायका कथन करतेहैं ऐसे भगवान् आत्रेयजी कहने लगे।
पुनर्वसुका प्रस्ताव । जनपदमण्डलेपाञ्चालक्षेत्रोद्विजातिवराध्युषितायांकाम्पिल्यराजधान्यांभगवान्पुनर्वसुरानेयोऽन्तेवासिगणपरिवृतःपश्चिमेघर्ममासेगङ्गातीरेवनविचारमनुविचरञशिष्यमग्निवेशमब्रवीत् १॥