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विमानस्थान अ०२
(५१७) आम दूषित होनेका कारण । नखलुकेवलमतिमात्रमेवाहारराशिमामप्रदोषकारणमिच्छन्ति । अपितुखलुगुरुरूक्षशीतशुष्कद्विष्टविष्टम्भिविदाह्यशुचिविरुद्धानामकालेअन्नपानानामुपसेवनम्। कामक्रोधलोभमोहेाहीशोकलोभोद्वेगभयोपतप्तनमनसावायदन्नपानमुपयुज्यतेतदपिआममेवप्रदूषयति ॥ ११॥
केवल अधिक मात्रासे आहार करनाही भुक्ताहारको आमदोषादि युक्त कर-ताहै यही नहीं किन्तु भारी, रूक्ष, शीतल, सूखे, द्वेषी, विष्टम्भकारक, विदाही,
अपवित्र और विरुद्ध अन्नपानोंका विना समय सेवन करना भी आमदोषको कुपित करताहै इसी प्रकार-काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईर्षा, लज्जा, शोक, लोभका उद्वेग, भय इनसे उत्तप्त मन होनेपर जो अन्नपान कियाजाताहै वह सब आमकोही दूषित करताहै ॥ ११॥
भवति चात्र। मात्रयाप्यभ्यवहृतंपथ्यश्चान्नजीति ।।
चिन्ताशोकभयक्रोधदुःखशय्याप्रजागरैः॥ १२ ॥ सो यहांपर कहते हैं कि, जो आहार मात्रापूर्वक पथ्य ही कियाजाय वह भी चिंता, शोक, भय, क्रोध, दुःख, सोना और जागना इन कारणोंसे यथोचित परिपाकको प्राप्त नहीं होता ॥ १२ ॥
आमके विसूचिकादि भेद । तद्विविधमामप्रदोषमाचक्षतेभिषजः। विसूचिकामलसञ्च। त. त्रविसूचिकामूद्धश्चाधश्चप्रवृत्तामदोषांयथोक्तरूपाविद्यात्॥ १३ ॥ उस आमदोषको वैद्यलोग दो प्रकारका कथन करतेहैं । १ विचिका । २ अलसक । उनमें विसूचिका रोग-छर्दद्वारा ऊपरके मार्गसे, दस्तद्वारा नीचे के मार्गसे दोनों ओरसे प्रवृत्त होता है । तथा शरीरमें सूई चूभनेका तोद और उल्लेश होताहै । इसको लोकमें हैजा और कौलरा कहते हैं ॥ १३ ॥
अलसकके लक्षण । अलसकमुपदक्ष्यामः दुर्बलस्याल्पाग्नेबहुश्लेष्मणोवातमूत्रपु. पुरीषवेगविधारिणःस्थिरगुरुवहुरूक्षशीतशुष्कान्नसेविनस्त