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विमानस्थान-म०२.
(५१५). त्राको विचारकर भोजन करे । मात्राक्रमसे भोजन करना उदरके अंश विभागसे प्रथम कथन कर चुके हैं। अब उसका विस्तारपूर्वक फिर वर्णन करते हैं ॥२॥
तद्यथा-कुक्षेरप्रपीडनमाहारेणहृदयस्यानवरोधःपार्श्वयोरविपाटनमनतिगौरवमुदरस्यप्राणनमिन्द्रियाणांक्षुत्पिपासोपरमः स्थानासनशयनगमनप्रश्वासोच्छासहास्यसंकथासुचसुखानुवृत्तिःसायंप्रातश्चसुखेनपरिणमनम् । बलवर्णोपचयकरत्वञ्चेति मात्रावतोलक्षणमाहारस्यभवति ॥३॥
आहारको इस प्रकार करना चाहिये जिससे कोखमें पीडा न हो और हृदयका अवरोध न हो। दोनों तरफके पार्श्वभाग फटें नहीं, पेटमें अधिक भारीपन न हो।इस प्रकार मात्रानुसार भोजन करनेसे-इंद्रियें पुष्ट होती हैं । क्षुधा और प्यास शान्त होती है । वैठने,सोने,चलने,श्वास,प्रतिश्वास लेनेमें तथा हंसने और वोलने आदिमें सुख प्राप्त होताहै । सायंकाल और प्रातःकाल दोनों समय आहार पाचन हुआ प्रतीत होताहै तथा मलादि वेग ठीक परिमाणसे ही निकलते हैं । बल और वर्णकी वृद्धि होती है । ठीक मात्रापूर्वक आहार करनेके यह लक्षण होते हैं ॥३॥
अमात्राके भेद । अमात्रावत्त्वंपुनर्द्विविधमाचक्षते। हीनमाधिकञ्च। तत्रहीनमाजाहारराशिवलवर्णापचयक्षयकरमतृप्तिकरमुदावर्तकरमवृष्य. मनायुष्यमनौजस्यंमनोवुद्धीन्द्रियोपघातकरंसारविधमनमलक्षम्यावहमशीतेश्चवातविकाराणामायतनमाचक्षते ॥ ४॥
अमात्राके दो भेद हैं । १ हीनमात्रा । २ आधिकमात्रा । हीनमात्रासे भोजन किया जाय तो-बल, वर्ण और पुष्टिकी क्षीणता, पेटका नहीं भरना, उदावर्त रोग तथा अवृष्यता होती है । वह आयुको नहीं बढाता,ओज, मन, बुद्धि, इन्द्रिय इन सबकी शक्ति हीन होती है। सारका प्रधमन,(इसी विमानस्थानके आठवें अध्यायमें आठ प्रकारके सारोंका कथन किया जायगा) अलक्ष्मी एवम् अस्सी प्रकारकी वातव्याधियें उत्पन्न होती हैं ॥ ४ ॥
अतिमात्रपुनःसर्वदोषप्रकोपनमिच्छन्तिसर्वकुशलाः ॥५॥ अव अधिकमात्रासे भोजनके अवगुणोंको कथन करते हैं।सव दोषोंको जानने वाले बुद्धिमान कथन करते हैं कि अधिक मात्रासे भोजन कियाहुआ आहार संपूर्ण दोषोंको कुपित करताहै ॥५॥