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विमानस्थान-अ० १. (५१३)
आत्माको देखकर भोजनके गुण । आत्मानमभिसमीक्ष्यभुञ्जतिसम्यक् । इदंममोपशेतेइदंनोपशेतेइति । विदितंहिअस्यआत्मनआत्मसात्म्यंभवति । तस्मादात्मनात्मानमभिसमीक्ष्यभुञ्जीतसम्यगिति ॥ ३६॥
अपने शरीरके बलावलको विचार कर ही विधिवत् भोजन करना चाहिये किं. यह पदार्थ मुझे सात्म्य है और यह असात्म्य है । इस प्रकार विचारकर भोजन किया हुआ अन्न शरीरके सात्म्य अर्थात् अनुकूल होताहै।इस लिये अपनी ममिका वलाबल विचारकर जो पदार्थ अपने शरीरको हितकर हो वह खाना चाहिये॥३६॥
तत्र श्लोकाः। रसान्द्रव्याणिदोषांश्चविकारांश्चप्रभावतः । वेदयोदेशकालौच शरीरञ्चसनाभिषक् ॥ ३७॥ विमानार्थोरसद्रव्यदोषरोगाः प्रभावतः। द्रव्याणिनातिसेव्यानित्रिविधंसात्म्यमेवच ॥३८॥ आहारायतनान्यष्टौभोज्यसाद्गुण्यमेवच । विमानेरससंख्याते. सर्वमेतत्प्रकाशितम् ॥३९॥ इति अग्निवेशकृते तंत्रेचरकप्रतिसंस्कृते विमानस्थाने .
रसविमाननामप्रथमोध्यायः ॥१॥ अब अध्यायका उपसंहार करतेहैं । यहांपर श्लोक हैं-कि जो मनुष्य रस,द्रव्य दोष, और रोगोंके प्रभावको जानता है और देश, काल, तथा शारीरिक अव स्थाको जानताहै उसीको वैद्य कहना चाहिये ॥३७॥ इस विमाननामक अध्यायमें विमानका अर्थ, रसके प्रभाव, द्रव्यके प्रभाव, दोषोंके प्रभाव एवम् रोगोंके प्रभाव तथा आहारविधि और अत्यन्त न सेवन करनेयोग्य द्रव्य, तीन प्रकारका सात्म्य आठ प्रकारके आहारके आयतन,आहारके गुण ये सव वर्णन किये गयेहैं॥३८॥३९॥ इति श्रीमहर्षिचरक० विमानस्थान पं० रामप्रसादवैद्य० भाषाटीकायां.
रसविमानं नाम प्रथमोऽध्यायः ॥१॥
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