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विमानस्थान-अ० ११ भोजन आदिके उपयोगके नियमको उपयोग कहते हैं । वह उपयोग विधिवद हानसे यथोचित रीतिपर भोजनादि जीर्ण होजाते हैं ॥ २३ ॥
उपयोक्ता और ओकसात्म्यका वर्णन । उपयोक्तापुनर्यस्तमाहारमुपयुक्त। यदायत्तमोकसात्म्यम्।॥ २४॥ उपयोक्ता भोजनके उपयोग करनेवालेको कहते हैं । भोक्ता मनुष्य अपने आधीन भोजनको करके यथोचित रीतिपर पचावे उसको ओकसात्म्य कहते हैं ॥ २४ ॥
इत्यष्टावाहारविधिविशेषायतनानिभवन्ति । एषांविशेषाःशुभाशुभफलप्रदाःपरस्परोपकारकाभवन्ति । तानबुभुत्सेत । बुद्धाचहितेप्सुरेवस्यान्नचमोहात्प्रमादाद्वाप्रियमहितमसुखोदकमुपसेव्यमाहारजातमन्यद्वा ॥ २५॥ इस प्रकार आहारविधिके आठ आयतन विशेषोंका कथन कियाहै। यह आहा. रका अष्टविध भेद शुभ और अशुभ फलको देनेवाला है एवम् परस्पर उपकारकारक. है । इसलिये आहारविधिको यथोचित रीतिपर जानकर हितकी इच्छावाला मनुष्य मोहंसे और प्रमादसे भी अपने अहित और सुखके नष्ट करनेवाले पदार्थीको सेवन न करे ॥ २५ ॥
आहार विधि। तत्रेदमाहारविधिविधानमरोगाणामपिचातुराणांहितम् । केषाञ्चित्कालेप्रकत्यैवहिततमंभुञ्जानानांभवति । उष्णस्निग्धं मात्रावजीर्णेवीर्याविरुद्धंइष्टंदेशेइष्टसौंपकरणंनातिद्रुतंनांतिविलम्बितनजल्पन्नहसंस्तन्मनाभुञ्जीतआत्मानमभिसमीक्ष्य ' सम्यक् ॥ २६॥ यह आहार विधिसे सेवन करना आरोग्य मनुष्योंके लिय तथा रोगियोंके लिये हितकर होता है। और समयपर भोजन करना स्वभावसे ही भोजनकर्ताको हितकारक. होता है। तथा कसा २ क लिये कोई नियत समय हितकर होताहै । अब आहारकी विधिको कथन करते हैं। गर्म, चिकना, और परिमाणका भोजन- प्रथम भोजनके पाचन होनेपर खाना चाहिये । वह भोजन आविरुद्धवर्यि होना चाहिये तथा पवित्रस्थानमें बैठकर वांछित सब पदार्थों से युक्त हो, भोजनको न बहुत जल्दी नाबहुत देर में करना चाहिये। और भोजन करते हुए बहुत बोलना और हंसना त्याग कर भाजनमें मन लगाकर अपने शरीरके बलावलको देखकर भोजन करें ॥ २६॥