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(१०८) चरकसंहिता-भा० टी०॥
कशोद्रव्याणिआरभन्ते । यथामधुसर्पिषोमेधुमत्स्यपयसा। ञ्चसंयोगः ॥ १९ ॥
दो अथवा बहुतसे द्रव्योंका संसर्ग होना संयोग कहाताहै । द्रव्योंका संयोग विशेष होनेसे गुण उत्पन्न होताहै । जैस-शहद और घृतको समान भागमें लानेसे एवम् शहद मछली और दूधके मिलानेसे विषके समान गुण उत्पन्न होजाताहै १९
राशिका वर्णन । राशिस्तुसर्वग्रहपरिग्रहौमात्राऽमात्राफलविनिश्चयार्थःप्रकृतः। तत्रसर्वस्याहारस्यप्रमाणग्रहणमेकपिण्डेनसर्वग्रहः । परिग्रहश्चपुनःप्रमाणग्रहणमेकैकत्वेनाहारद्रव्याणाम् । सर्वस्य हिग्रहःसर्वग्रहःसर्वतश्चग्रहःपरिग्रहःउच्यते ॥२०॥
राशि-सव द्रव्योंके सर्वग्रह और परिग्रहको कहते हैं । इसका वर्णन मात्रा और अमात्राके फलनिश्चयार्थ किया है उनमें सब प्रकारके भोजन सामग्रीका गोलासा बनाकर खाना सर्वग्रह कहा जाताहै । व्यंजन आदि आहार द्रव्योंको अलग अलग भक्षण करनेको परिग्रह कहते हैं । सनदव्योंको मिला एकसाथ ग्रहण करनेको सर्वग्रह कहते हैं और सबसे किसी एक पदार्थके खानेको परिग्रह कहतेहैं ॥२०॥
देशका वर्णन । देशःपुनःस्थानद्रव्याणामुत्पत्तिप्रचारोंदेशसात्म्यञ्चाचष्टे ॥२१॥ द्रव्यके उत्पन्न होनेके स्थानको तथा प्रचार (फिरना तुरना आदि) आदिके स्थानको देश कहते हैं ॥ २१ ॥
कालका वर्णन। कालोहिनित्यगश्चावस्थिकश्च । तत्रावस्थिकोविकारमपेक्ष्यते। नित्यगस्तुखलुऋतुसात्म्यापेक्षः ॥ २२॥ काल दो प्रकारका होता है । नित्यग, आवस्थिक । उनमें आवस्थिक काल विकारकी अपेक्षा करताहै अर्थात् बाल्यावस्थासे विकृति प्राप्त होकर तरुणावस्थामें माप्त होना आवस्थिक काल कहा जाता है। नित्यगकाल ऋतु और सात्म्यकी अपेक्षा करताहै । अर्थात् नित्यगकाल क्षण, दिवस, मास, ऋतु आदिक चक्रको कहते हैं ॥ २२ ॥
उपयोगका वर्णन । . उपयोगसस्थातूपयोगानयमः सजीर्णलक्षणापेक्षः ॥ २३॥ .