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विमानस्थान- अ० १.
(५०७ ) सात्म्यों से क्रमपूर्वक उत्तम सारत्म्यका अभ्यास करना चाहिये। संपूर्ण रसों को तथा संपूर्ण द्रव्योंको सात्म्य होनेपर एवम् आहार विधिके विशेष आयतनोंको विचारकर अहित पदार्थों को त्याग देवे एवम् हितोंका सेवन करे ॥ १५ ॥
आहारके आयतन । तत्रखल्विमानिअष्टावाहारविधिविशेषायतनानि भवन्ति । त
द्यथा - प्रकृतिकरणसंयोगराशिदेशकालोपयोगसंस्थोपयोक्ताटेमानिभवन्ति ॥ १६ ॥
उनमें आहार विधिके यह अष्टविध आयतन कथन किये हैं। जैसे- प्रकृति, करण, संयोग, राशि, देश, काल, उपयोग, संख्या तथा उपयोगको करनेवाला यह आठ आयतन हैं ॥ १६ ॥
प्रकृतिका वर्णन | तत्रप्रकृतिरुच्यतेस्वभावोयः सपुनराहारौषधद्रव्याणां स्वाभाविकोगुर्वादिगुणयोगः । तद्यथा माषमुद्गयोः शूकरैणयोश्च ॥ १७ ॥
इनमें प्रकृति - स्वभावको कहते हैं । आहार र औषध द्रव्योंका जो स्वाभाविक गुरु, आदि गुणका योग है उसका प्रकृति कहते हैं । जैसे-उडद स्वभावसे ही भारी है और मूंग स्वभावसे हो हल्के गुणवाला है । सूअरका मांस - स्वभावसे हा भारी गुणवाला है और हिरनका मांस स्वभावसे ही हलका होता है ॥ १७ ॥ करणका वर्णन |
करणंपुनःस्वाभाविकानां द्रव्याणामभिसंस्कारः । संस्कारोहि गणान्तराधानमुच्यते । तेगुणाश्चतायाग्निसन्निकर्षशौचमन्थनदेशकालवशेन भावनादिभिः कालप्रकर्षभाजनादिभिश्चाभिधीयन्ते ॥ १८ ॥
स्वाभाविक द्रव्योंके संस्कारको करण कहते हैं । संस्कारका अर्थ गुणान्तरकों प्राप्त करना है वह गुण - जल और अग्निके सन्निकर्षसे एवम् शौच, मन्थन, देश, काल, बल, भावना आदिसे तथा समयके उत्कर्ष एवम् पात्रादिकों के संसर्ग से गुणान्तरक प्राप्त होते हैं ॥ १८ ॥
संयोगका वर्णन |
संयोगस्तुद्वयोर्बहूनांवाद्रव्याणां संहतीभावः सविशेषमारभतेय.