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विमानस्थान-अ० १. (५०३: द्रव्यप्रभावतश्चदोषप्रभावतश्चविकारप्रभावतश्चतत्त्वमुपदे
क्ष्यामः । तत्रैषरसद्रव्यदोषविकारप्रभावउपदिष्टो भवति ॥७॥ __ इसलिये बहुतसे द्रव्य समुदायके मिलनसे उस समुदायके प्रभावको जानकर फिर रस तथा द्रव्य एवम् विकार इनके प्रभावोंके जाननेका यत्न किया जासकताहै। इसलिये रसप्रभावसे, द्रव्यप्रभावसे, दोषप्रभावसे और विकारप्रभावसे तत्वको कथन करतेहैं।सो यहांपर रस,द्रव्य, दोष,विकार इनके प्रभावोंका कथन कियाजाताहै।॥७॥
द्रव्यप्रभावका वर्णन । द्रव्यप्रभावंपुनरुपदेक्ष्यामः। तैलसर्पिमधूनिवातपित्तश्लेष्मप्रशमनानिद्रव्याणिभवन्ति । तत्रतैलस्नेहोष्ण्यागोरवोपपन्नवाद्वातंजयतिसततमायस्यमानम् । वातोहिरोक्ष्यशैत्यलाघवोपपन्नोविरुद्धगुणोभवति। विरुद्धगुणसन्निपातेहिभूयसाल्पमवजीयतेतस्मात्तैलंवातंजयतिसततमभ्यस्यमानम् ॥ ८॥ ' रसके प्रभावको प्रथम कथन करचुके अब यहांपर द्रव्यके प्रभावको कहते हैं। जैसे तैल, घृत, शहद यह वात, पित्त, कफको शमन करनेवाले द्रव्य होतहैं । इनमें तैल चिकना और गरम होनेसे, एवम् गौरवगुण विशिष्ट होनेसे, निरन्तर मालिश किया हुआ अथवा विधिपूर्वक खाया हुआ वायुको शान्त करताहै । क्योंकि वायु तैलके गुणसे विरुद्ध गुणवाला रूक्ष,शीतल और हलकापन युक्त होताहै। दोपकारके विरुद्धगुण आपसमें मिलनेसे भारी गुण अल्प गुणको जीत लेतेहैं । इसलियेअभ्यास. कियाहुआ तैल अपने स्निग्धादि गुणोंद्वारा वायुको जीतलेताहै ॥ ८॥
सर्पिःखलएवमेवपिंजयतिमाधुर्य्याच्छैत्यान्मन्दवीर्यत्वाच्च
पित्तामधुरमुष्णंतीक्ष्णम् ॥९॥ - इसी प्रकार सेवन किया हुआ घृत भी पित्तको जतिलेताहै । घृत मीठा,शीतल... .... और मंद होनेसे मधुरतारहित उष्ण और तीक्ष्ण इन विपरीत गुणोंवाले पित्तको जीतलेताहै ॥९॥
मधु च श्लेष्माणं जयति रोक्ष्यात् तैक्ष्ण्यात् कषायवाच श्लेष्मा हि स्निग्धो मन्दो मधुरश्च ॥ १०॥
शहद रूक्ष, कषाय और तीक्ष्ण होनेसे स्निग्ध, मंद,मधुर इन विपरीव गुणोंवाले कफको जीतलेताहै ॥ १० ॥