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विमानस्थान-अ० १. . (५०१) रस छ: प्रकारके होते हैं । जैसे-मीठा, खट्टा, नमकीन, चरपरा, कडुआ, और कसैला। यह छः रस उत्तम रीतिस सेवन किये जानेपर शरीरको पालन करते हैं । और यही छः रस अनुचित रीतिस उपयोग किये हुए दोषोंके प्रको! 'पके कारण हैं ॥२॥
दोषोंका वर्णन । दोषाःपुनस्त्रयोवातपित्तश्लेष्माणः तेप्रतिभताःशरीरोपकारकाभवन्ति । विकृतिमापन्नाःखलनानाविधैर्विकारैःशरीरमु- . पतापयन्ति ॥३॥ दोष-तीन प्रकारके होते हैं । वात, पित्त और कफ । वह तीनोंदोष परिमाणसे ठीक रहनेपर शरीरको पुष्ट करते हैं और विकृत होनेसे शरीरको अनेक प्रकारके रोगों द्वारा तपायमान करते हैं ॥ ३ ॥
रसों द्वारा दोषोंका चयापचय । तत्रदोषमेकैकंत्रयस्त्रयोरसाजनयन्ति,त्रयस्त्रयश्चोपशमयन्ति । तद्यथा--कटुतिक्तकषाया वातं जनयन्ति, मधुराम्ललवणास्त्वेनं शमयन्ति । कटुकाम्ललवणाः पित्तं जनयन्ति, मधु.. रतिक्तकषायाःपुनरेनं शमयन्ति । मधुराम्ललवणाःश्लेष्माणं
जनयंति, कटुतिक्तकषायास्त्वेनं शमयन्ति ॥ ४॥ . उनमें एक एक दोषको तीनतीन रस उत्पन्न करते हैं उसी प्रकार तीनतीन रस शान्तिको करते हैं अर्थात् दोषोंको शमन करते हैं । तात्पर्य यह हुआ कि तीनरस एक दोषको वढाते हैं और अन्य तीन रस उसी दोषको शान्त करते हैं । जैसे-चरः परा,कडुआ,कसैला यह तीनरस वायुको उत्पन्न करते हैं । उसी प्रकार मीठा,खट्टा
और नमकीन यह तीन रस वायुको शान्त करते हैं । चरपरा, खट्टा और नमकीन यह तीन रस पित्तको उत्पन्न करते हैं और मीठा कडुआ, कसैला यह तीन रस पित्तको शान्त करते हैं । मीठा- खट्टा, नमकीन यह तीन रस कफको उत्पन्न करते हैं और चरपरा, कडुआ, कसैला यह तीन रस कफको शान्त करते हैं ॥ ४ ॥
रसदोषसन्निपाते तु ये रसा यैदोषैःसमानगुणा:समानगुणभूयिष्ठा वा भवन्ति ते तानभिवर्द्धयन्ति । विपरीतगुणास्तु विपरीतगुणभूयिष्ठा वा शमयन्त्यायस्यमानाःइत्येतद्वश्वस्था