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निदानस्थान-अ०८ हेतुप-यनामानिव्याधीनांलक्षणस्यच । निदानस्थानमेतावत्संग्रहणोपदिश्यते॥४२॥ इति श्रीमहर्षिचरकप्रणीतसहितायांनिदानस्थानं सम्पूर्णम् ।
अब निदानस्थानका उपसंहार करतेहैं । इस निदानस्थानमें-हेतु, पूर्वरूप, रूप, उपशय, संप्राप्ति, पूर्व उत्पत्ति तथा चिकित्साका सूत्रपात एवम् ज्वरादिक भाठ विकारोंकी साध्यता और असाध्यता इन सवका कथन कियागयाहै तथा इन सबको अलग २ एकएक करके इनके हेतु, चिह्न तथा उपशान्तिकारक उपाय एवम् हेतुके पर्यायवाचक नाम एवम् व्याधिके पर्यायवाचक नाम तथा लक्षणके पर्यायवाचक नाम यह सव इस निदानस्थानके संग्रहमें कथन कियेगये, अर्थात् इन सब विषयों करके युक्त यह निदानस्थान समाप्त हुआ ॥४०॥४१॥ ४२ ॥
दोहा। हेतु रूप आदिक सव, विधिवत् व्याधिज्ञान ।
सो प्रसादनीयुक्त यह, भयो निदान स्थान ॥१॥ इति श्रीमहर्पिचरकप्रणीतायुर्वेदीयसंहितायां निदानस्थाने पं०रामप्रसादवैद्यविरचितप्रसादन्याख्यभापाटीकायामपस्मारनिदानं नामाप्टमोऽध्यायः ॥ ८॥
समाप्तमिदं निदानस्थानम् ।