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निदानस्थान-अ० ६.
(४७७) प्रकोपमापद्यन्ते । ते प्रकुपितानानाविधैरुपद्रवैः शरीरमुपशोषयन्ति । तं सवरगाणां कष्टतमंमत्वा राजयक्ष्माणमाचक्षते भिषजः । यस्माद्वा पूर्वमासीद्भगवतःसोमस्योडुराजस्य तस्माद्राजयक्ष्मेति ॥ २२॥ इस प्रकार इन चार शोषरोगके कारणोंको सेवन करनेसे वात, पित्त, कफ यह तीनों कोपको प्राप्त होतेहैं । वह कोपको प्राप्त हुए अनेक प्रकारके उपद्रवों द्वारा शरीरको सुखा देतेहैं । इसलिये सब रोगों में कष्टतम इस रोगको जानकर वैद्यलोग राजसूक्ष्मा कहतेहैं । अथवा तारागणोंके पति. भगवान् चन्द्रमाके शरीरंमें यह रोग पहिहं हुआ था इसलिये भी इस शोषरोगको राजयक्ष्मा कहते हैं ॥ २२ ॥
राजयक्ष्माके पूर्वरूप। तस्येमानिपूर्वरूपाणि । तद्यथा--प्रतिश्यायःक्षवथुरभीक्ष्णश्ले.
मप्रसेकोमुखमाधुर्य्यमनन्नाभिलाषोऽनकालेचायासोदोषदर्शनमदोषदर्शनमदोषेष्वल्पदोषेषुवाभावेषुपात्रोदकानसूपापूपोपदंशपरिवेशकेषुभुक्तवतोहल्लासस्तथोल्लेखनमाहारस्यान्तरा. न्तरामुखपादस्यशोषःपाण्योरवेक्षणमत्यर्थमक्ष्णोः श्वेतताबाहो. प्रमाणजिज्ञासास्त्रीकामतातिघृणित्वंबीभत्सदर्शनताचकाये स्वप्नेहिअभीक्ष्णंदर्शनमनुदकानामुदकस्थानांशून्यानाञ्चग्राम- . नगरनिगमजनपदानांशुष्कदग्धभग्नानाञ्चवनानांकृकलासमयूरवानरशुकसर्पकाकोलूकादिभिःसंस्पर्शनमधिराहणंवाअश्वोष्ट्रखरवराहैर्यानञ्चकेशास्थिभस्मतुषाङ्गारराशीनाञ्चाधिरोहणमितिशोषपर्वरूपाणिभवन्ति ॥ २३॥ उस राजयक्ष्माके यह पूर्वरूप होतेहैं जैसे प्रतिश्याय छींक आना, निरन्तर कफ गिरना, मुखमें मीठापन, अन्नकी इच्छा न होना, अन्नके समय थकावटसी मालुम देना, दोषरहित वस्तुओंमें भी दोषोंका दिखाई देना अथवा थोडे दोष. वाली वस्तुओंमें भी अधिक दोष दिखाना और उनके सेवनसे अनिच्छा एवम पात्र, जल, अन्न, दाल, पिष्ट पदार्थ, चटनी एवम् मसाले आदि युक्त पदार्थ इन सबमें अनिच्छा, भोजनके पश्चात् सूखी छर्द होना और जो भोजन