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निदानस्थान-अ०८.
(४९१३ मरोचकाविपाकौहृदयग्रहःकुक्षेराटोपोदौर्वल्यमङ्गमदोंमोहस्त. मसोदर्शनमूर्छाभ्रमश्चाभीक्ष्णञ्चस्वप्नेमदनर्तनपीडनवेपनव्यधनपतनादीनिअपस्मारपूर्वरूपाणिभवन्तिततोऽनन्तरमपस्माराभिनिर्वृत्तिः॥४॥ उस अपस्माररोगके यह पूर्वरूप होतेहैं। जैसे-दोनों भृकुटियोंका संकोच,. नेत्रोंकी निरंतर विकृति (टेढसे रहना)कानोंमें शब्दसा सुनना, अथवा श्रवणशक्ति नष्ट होजाना, मुखसे लार बहना, नाकसे मैल गिरना, अन्नका न खाना, अरुचि, अविपाक, हृदयका रुकजाना, कूखका फूलना, दुर्बलता, अंगमर्द, मोह,अंधकार दर्शन, मूर्छा, भ्रम, सोते हुए मस्त होजाना, नाचना, दोनों हार्थोको मीजना,. कांपना, व्यथाका प्राप्तहोना, और गिर पडना, यह अपस्माररोगके पूर्वरूप हैं । इसके अनंतर अपस्माररोग प्रगट होजाताहै ॥४॥
वातज अपस्मारके लक्षण। तत्रेदमपस्मारविशेषविज्ञानंभवति। तद्यथा--अभीक्ष्णमपस्मरन्तं क्षणे क्षणे संज्ञा प्रतिलभमानमुत्पिण्डिताक्षमसाम्ना वा विलपन्तमुद्वमन्तं फेनमतीवाध्मातग्रीवमाविद्धशिरस्कं विषमविनतांगुलिमनवस्थितसक्थिपाणिपादमरुणपरुषश्यावनखनयनवदनत्वचमनवस्थितचपलपरुषरूक्षरूपदार्शनंवातलानुपशयं विपरीतोपशयं वातेनापस्मारवन्तंविद्यात् ॥ ५॥
अब अपस्मारके भेदोंके ज्ञानको कथन करतहैं वह इस प्रकार हैं । जिस मनु. ध्यको अपस्माररोग होताहो अथवा स्मरणशक्ति नष्ट होजाय और अपस्मार होनेके समय थोडी थोडी देरमें होश आजाताहो जिसके नेत्रकी पुतली सिकुडगईहो जो मनुष्य वकवाद करताहो एवम् मुखसे झाग निकालताहो तथा गर्दन फूली हुईसी हो मस्तक रुका हुआसा हो हाथोंकी अंगुलियें टेढी होगईहों तथा हाथपर अनवस्थित हों एवम् नख, नेत्र, मुख और त्वचा यह सव लाल कठोर और काले होगयेहों, मन चलायमान हो, सब , वस्तुयें चपल, कठोर और रूक्ष दिखाई देवें तथा वातकारक पदार्थोंसे रोगकी वृद्धि हो और वातनाशक पदार्थोंके सेवनसे शान्ति हो यह सब लक्षण वातजानित अपस्मारमें होतेहे ॥ ५॥
पित्तजअपस्मारके लक्षण । '' अभीक्ष्णमपस्मरन्तं क्षणे क्षणेसंज्ञाप्रतिलभमानमनुकूजन्त: