________________
चरकसंहिता - भा० टी० ।
हेतुभिर्बहुभिचैकोज्वरोरूक्षादिभिर्भवेत् ।
रूक्षादिभिर्ज्वराद्याश्वव्याधयः सम्भवन्तिहि ॥ २४ ॥
कहीं रूक्ष आदिक बहुतसे हेतुओंसे केवल एक ज्वर ही उत्पन्न होता है कहीं उन्हीं रूक्ष यदि बहुतसे हेतुओंसे ज्वर आदिक बहुत से रोग भी उत्पन्न होजाते हैं ॥ २४ ॥ . रोगों में श्रमकारक ल०
लिङ्गञ्चैकमनेकस्यतथैकस्यैकमुच्यते । बहून्येकस्यचव्याधेर्वहूनां स्युर्बहूनि च ॥ २५ ॥
(४९६)
कहीं बहुतसे रोगोंका एक ही लक्षण होता है । कहीं एक रोगका एकही लक्षण होता है । कहीं एक व्याधिके बहुतसे लक्षण होते हैं कहीं बहुतसी व्याधियों के बहुत से. लक्षण होते हैं ॥ २५ ॥
विषमारम्भमूलानांलिंग मेकंज्वरोमतः । ज्वरस्यैकस्यचाप्येकः सन्तापोलिंगमुच्यते ॥ २६ ॥ विषमारम्भमूलैश्चज्वर एकोनिरुच्यते । लिंगैरेतैर्ज्वरश्वासहिक्काद्याः सन्तिचामयाः ॥ २७॥
जैसे बहुतसे विषमारंभ रोगोंका केवल एक ज्वर ही चिह्न दिखाई देता है । कहीं
•
केवल ज्वरका एक संतापमात्र लक्षण दिखाई देता है । कहीं बहुत से विषमारंभ मूलक लक्षणोंसे केवल ज्वरमात्र दिखाई देता है । कहीं उन्हीं लक्षणोंसे ज्वर, श्वास, हिचकी आदि रोग दिखाई देते हैं ॥ २६ ॥ २७ ॥
रोगोंकी शान्तिका वर्णन । एकाशान्तिरनेकस्य तथैकैकस्यलक्ष्यते ।
व्याधेरेकस्य चानेको बहूनांबह्वय एवच ॥ २८ ॥
कहीं अनेक प्रकारके रोगोंकी एक ही प्रकारकी चिकित्साद्वारा शान्ति होजाती हैं। कहीं एक प्रकारके रोगमें एक ही प्रकारकी चिकित्सा करनी पडती है ॥ २८ ॥ शान्तिरामाशयोत्थानां व्याधीनांलंघनक्रिया | ज्वरस्यैकस्यचाप्येकाशान्तिलंघनमुच्यते ॥ २९ ॥
जैसे आमाशय की खराबी से उत्पन्नहुए बहुत से रोगोंकी शान्ति के लिये केवललंघन करनाही उन सब विकारोंकी शान्तिका एक ही उपाय है । उसी प्रकार, ज्वररूप एक व्याधिकी शान्तिके लिये केवल लंघन शान्तिकारक होता है ॥ २९ ॥