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८.४८२) चरकसंहिता-भा० टी०॥ हर एक जगह विना ही किसी प्रसंगसे मुस्कुराना, हंसना, नाचना, गाना, मुख तथा हाथोंसे बाजे बजाना एवम् वीणा,वांसुरी,शंख,शम्या,ताल,शब्द आदि मुखसे बाजे बजाना अर्थात् असंबद्ध स्वर करना, कुत्ते, गधे आदिकोंपर तथा लकडी पत्थर आदिपर संवारी करना एवम् लकडी,पत्थर,जूते आदिके आभूषण पहिनंना, जो चीजें मिल न सकें उनके लिये इच्छा करना, मिलहुए भोजनादिक पदार्थोंको अपमानित करना; बहुत मत्सरता, कृशता, कठोरपन यह सव होना, नेत्रोंको ऊपरको चढायेरखना तथा नेत्रोंका लाल रंग होना,वातनाशक द्रव्योंसे उपद्रवोंका शान्त होना और वातकारक द्रव्योंसे रोगका बढना यह लक्षण वातजनित उन्माद रोगके होतेहैं ॥४॥
पित्तोन्मादके लक्षण । अमर्षःक्रोधःसरम्भश्चास्थानेशस्त्रलोष्टकाष्ठमुष्टिभिरभिद्रवणं स्वेषांपरेषांवाप्रच्छायशीतोदकान्नाभिलाषःसन्तापोऽतिवेलः । ताम्रहरितहारिद्रसंरब्धाक्षतापित्तोपशयाविपर्यासादनुपशयिताचेतिपित्तोन्मादलिंगानिभवन्ति ॥५॥ किसीकी बातको न संहना, क्रोध, गर्व करना, विना कारण शस्त्र, मट्टीका डला, लकडी लेकर अथवा मुक्की बांधकर किसीके पीछे दौडना, अपने और पराये मनुष्योंको मारना, शीतलछाया, शीतलजल शीतल अन्न इनकी अभिलाषा होना, शरीरमें अधिक संताप रहना, नेत्र ताम्रवर्णके अथवा हरे वा हल्दीके समान पीले वर्णके हों तथा टेटे और विक्षिप्तसे दिखाईदें एवम् काधयुक्त प्रतीत हों। पित्तनाशक द्रव्योंद्वारा शान्ति प्राप्त हो और पित्तकारक द्रव्योंद्वारा रोगकी वृद्धि हो यह पित्तजानत उन्मादके लक्षण हैं ॥ ५॥ .
कफोन्मादके लक्षण । स्थानमेकदेशतूष्णीम्भावोऽल्पंशश्चंक्रमणलालाशिंघाणकप्रस्त्रवणमनन्नाभिलाषोरहस्कामताबीभत्सत्वशाचद्वेषःस्वल्पनिद्रताश्वयथुराननेशुक्लस्तिमितमलोपादिग्वाक्षताश्लेष्मोपशयवि'पोसादनुपशयिताचेतिश्लेष्मोन्मादलिङ्गानिभवन्ति ॥६॥ किसी एक स्थानमें चुपचाप बैठे रहना, इधर उधर बहुत थोडा फिरना, मुखसे लार और नाकसे मलका अधिक गिरना,अन्नमें रुचि न होना, एकान्तमें बैठेरह: नेकी इच्छा होना,शरीरकी आकृतिकी भयानक होना, शुद्धता बुरी मालूम होना,
ताचेतिपित्तोन्मादा क्रोध, गर्व करना, पाछे दौडना,अपने