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निदानस्थान-अ० ७. (४८७)
भूतादिकृत उन्मत्तताके तीन प्रयोजन । · त्रिविधन्तुखलुउन्मादकराणांभूतानामुन्मादनेप्रयोजनंभवति । तद्यथा--हिंसारतिरभ्यर्चनश्चेति तेषांतत्प्रयोजनमुन्मत्ताचरणविशेषलक्षणैर्विद्यात् । तत्राहँसार्थमुन्माद्यमानोऽ. निप्रविशतिअप्सुवानिमज्जतिस्थलात्श्वभ्रेवानिपतति । शत्रकशाकाष्ठलोष्टमुष्टिभिर्हन्त्यात्मानमन्यञ्चप्राणवधार्थमारभते । हिंसार्थिनमुन्मत्तमसाध्यविद्यात् । साध्योपुनःविवरौ ॥१८॥
उन्मादकारक देवताओंका उन्मादरोग उत्पन्न करनेमें तीन प्रकारका प्रयोजन है। १ हिंसा २ अराति ३ अभ्यर्चन । इन तीनों प्रयोजनोंको उन्मत्त मनुष्यके आचरणोंसे जाना जासकताहै उनमें हिंसा अर्थात् मनुष्यके पापकर्मसे कुपित हुए देवादि जब उसके (हिंसा-मारने) के लिये उन्मादरोगको उत्पन्न करतेहैं तब वह मनुष्य अग्निमें प्रवेश करे अथवा जलमें डूब मरे या ऊंचे स्थानसे नीचे गिर पडे अथवा किसी गढे आदिमें गिरे एवम् शस्त्र, कशा, काष्ठ, पत्थर, मुक्का आदिसे अपने प्राणोंको नष्ट करने लगे। इस प्रकार देवादिकोंसे हिंसाके लिये उन्मादित कियाहुआ मनुष्य असाध्य होताहै । अरति और अभ्यर्चनाके लिये जो दो प्रकारके उन्मादरोग हैं उनको साध्य जानना ॥ १८॥
साध्योंका वर्णन । तयोःसाधनानि । मन्त्रौषधिमणिमालबल्युपहारहोमनियमनतप्रायश्चित्तोपवासस्वस्त्ययनप्रणिपातगमनादीनिइतिएवमेतेपञ्चोन्मादाव्याख्याताभवन्ति ॥ १९॥ उन साध्य उन्मादोंको साधन करनेके यह उपाय हैं। जैसे-मंत्र, औषध, मणि,. मंगलकर्म, बलिदान, उपहार ( भोजनादि देना), हवन, नियम, व्रत, प्रायश्चित्त,. उपवास, स्वस्त्ययन (स्वस्तिवाचन आदि अथवा शान्तिकारक कर्म), प्रणिपातन (वंदना ) एवम् देवयात्रादि कर्म आगन्तुज उन्माद रोगकी शान्तिके लिये करना चाहिये । इस प्रकार पांच प्रकारके उन्मादका वर्णन कियागयाहै ॥ १९॥ .
उन्मादका विविधत्व । ते तु खलु निजागन्तुविशेषेणसाध्यासाध्यविशेषेण च प्रविभज्यमानाः पञ्च सन्तो द्वौ एव भवतः ॥ २० ॥