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निदानस्थान-अ०६. (४७५) यहांपर एक श्लोक कहाहै कि भोजनका परमधाम शुक है इसलिये उस शुक्र (वीर्य) की रक्षा करनी चाहिये । क्योंकि उसके क्षय होनसे अनेक प्रकारके रोग उत्पन्न होतेहे अथवा मनुष्य मृत्युको प्राप्त होजाताहै ॥ १५ ॥
विषमाशनका वर्णन। विषमाशनशोषस्यायतनमितियदुक्तंतदनुव्याख्यास्यामः । यदापुरुषःपानाशनभक्ष्यलेह्योपयोगान्प्रकृतिकरणसंयोगराशिदेशकालोपयोगसंस्थोपशयविषमानासेवतेतदातस्यवातपित्तश्लेष्माणोवैषम्यमापद्यन्ते । तेविषमा शरीरमनुपसृत्ययदास्रोतसांमुखानिप्रतिवाऱ्यावतिष्ठन्तेतदाजन्तुर्यदाहारजातमाहरति तदस्यमूत्रपुरीषमेवोपचीयतेभूयिष्ठम्, नान्यस्तथा शरीरधातुःसपुरीषोपष्टम्भावर्त्तयति ॥ १६॥ विषमाशन जो चौथा कारण कहाहै । अव उसकी व्याख्या करतेहैं।जव मनुष्य पान, अशन, भक्ष्य, लेह्य इन चार प्रकारके पदार्थोंको कारण,करण,संयोग,राशि, देश, काल, भोजन प्रकार, एवम् सात्म्य इन आठ प्रकारके भोजनके स्थानों अर्थात् विधानोंको.त्यागकर विषमरीतिसे सेवन करताहै तब उसके शरीरमें वात, पित्त, कफ यह तीनों दोष विषमताको प्राप्त होजातेहैं । वह तीनों दोष विषमताको प्राप्तहुए शरीरके आश्रयीभूत स्रोतोंके मुखोंको ढककर स्थित होतेहैं । फिर यह मनुष्य जो २ पदार्थ खासाहै उससे मल और मूत्रकी ही वृद्धि होतीहै और अन्य शरीरके धातुओंकी वृद्धि नहीं होती और धातुएं क्षीण होकर केवल मलही अधिक. निकलता जाताहै ॥ १६ ॥
तस्माच्छुष्यतोविशेषणपुरीषमनुरक्ष्यम्,तथासर्वेषामत्यर्थकृश- . दुर्वलानाम् । तस्यानाप्याय्यमानस्यविषमाशनोपचितादोषाः पृथक्पृथगुपद्रवैर्युञ्जतोभूयःशरीरमुपशोषयन्ति ॥ १७॥ क्योंकि मलकी अधिक प्रवृत्ति होने से शरीर स्थिर नहीं रह सकता । इसलिये संपूर्ण कृश और दुर्बल मनुष्यके मलकी रक्षा करनी चाहिये । उस विषमाशन करनेवाले मनुष्यके शरीरमें मलकी रक्षा न करनेसे और अन्य धातुओंको पुष्ट करनेका उपाय न करनेसे वह वातादि दोष फिर अलग २ उपद्रवोंको करतेहुए शरीर में शोषरोग उत्पन्न करतेहैं ॥ १७ ॥