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निदानस्थान-१० ६.
(४७३) क्रोधादिभिर्वासमाविश्यते,कशोवासनरूक्षानपानसेवीभवति, दुर्बलप्रकृतिरनाहारोऽल्पाहारोवाआस्तेतदातस्यहृदयस्थायी रसाक्षयमुपैति । सतस्योपक्षयात्संशोषप्राप्नोतिअप्रतीकाराचा नुबध्यतेयक्ष्मणायथोपदेक्ष्यमाणरूपेण ॥११॥ तीसरा जो शोषरोगका कारण क्षय कथन कियाहै अब उसकी व्याख्या करतेहैं। जव मनुष्यक हृदयको अत्यन्त शोक एवम् चिन्ता घेर लेतेहैं अथवा ईर्षा, उत्कंठा, भय, क्रोध इनको अत्यन्ततासे घिरं जाता है अथवा अत्यन्त कृश होनेपर भी रूक्ष अन्नपानोंका सेवन करताहै एवम् दुर्वल शरीरवाला लंघन अथवा बहुत थोडा आहार करताहै तब इसके हृदयमें रहनेवाला रस क्षय होजाताहै । उसके क्षय होनेसे मनुष्यके सब धातु सूख जाते हैं। इसका शीघ्र यल न करनेसे आगे कहा हुआ यक्ष्मारोग उत्पन्न होजाताहै ॥ ११ ॥
___ यक्ष्मा होनेकी रीति । यदापुरुषोऽतिहर्षात्प्रसक्तभावःस्त्रीषुअतिप्रसङ्गमारभतेतस्यातिप्रसङ्गानेतःक्षयमुपैतिक्षयमपिचोपगच्छतिरेतसियदिमनःस्त्रीभ्यो वास्यनिवर्ततअतिप्रवर्ततेएवतस्यातिप्रणीतसङ्कल्पस्य मैथुनमापद्यमानस्यशुक्रनप्रवर्ततेअतिमात्रोपक्षीणत्वात् ।। अथास्यवायुयायच्छमानस्यैवधमनीरनुप्रविश्यशोणितवाहिनीस्ताभ्यःशोणितंपच्यावयतितच्छुक्रक्षयाच्छुकमार्गेणशोणितंप्रवर्ततेवातानुसृतलिंगम् ॥ १२ ॥ जव मनुष्य अत्यंत हर्षसे आसक्त होकर अधिक मैथुन करताहै उस अधिक मैथुन करनेसे उसका वीर्य क्षय होजाताहै। वीर्यके क्षय होनेपर भी जिसका चित्त स्त्री संगसे निवृत्त नहीं होता बल्कि और भी अधिक प्रवृत्ति होती जाती है । इस प्रकार स्त्री संसर्गमें अधिक प्रवृत्ति होनेसे वीर्यका क्षय होकर पुनः मैथुन करनेपर भी वीर्यके न रहनेसे वीयकी प्रवृत्ति नहीं होती क्योंकि वह अत्यन्त क्षीणताकों प्राप्त हो लेताहै ऐसा करनेसे फिर उसके शरीरमें वायु प्रवेश हो धमनीय नसोंके वीचमें प्रवेश करके रक्तवाहिनी नसोंमेंसे रक्तको लेकर वीयके मार्गसे वीर्यके क्षय होनेके अनन्तर उस रक्तको निकालताहै । और वायु उस रक्तके साथ मिलना; . ताहै ॥ १२॥ .