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निदानस्थान-अ०७. (४७९) दुर्बलन्त्वतिक्षीणमांसशोणितमल्पलिंगमध्यजातारिष्टमापिबहुलिङ्गमेवविद्यादसहत्वाद्वयाध्यौषधवलस्य त परिवर्जयेत् ॥२७॥ यदि रोगी दुर्बल हो तथा उसके रक्त और मांस क्षीण होगये हों वह मनुष्य अरिष्टकारक सब लक्षण न होनेपर भी असाध्य जानना चाहिये । उसको व्याधि और औषधीका वल न सहन करनेवाला देखकर त्याग देना चाहिये ।। २७॥ क्षणेनहिप्रादुर्भवन्त्यरिष्टानि । अन्यनिमित्तश्चारिष्टप्रादुर्भाव इति ॥२८॥ इस प्रकार राजरोगमें क्षणमात्रमें अरिष्टकारक सुव लक्षण प्रगट होजातेहैं तथा अन्य कारणोंसे भी अरिष्टकारक लक्षण उत्पन्न होते हैं ॥ २८॥
तत्रश्लोकः। · समुत्थानश्च लिङ्गञ्च यः शोषस्यावबुध्यते।
. पूर्वरूपञ्च तत्त्वेन सराज्ञः कर्तुमर्हति ॥२९॥ इति चरकसंहितायां निदानस्थाने शोषनिदानं समाप्तम् ॥६॥
अब यहां अध्यायकी पूर्तिमें एक श्लोक है । शोषरोगके कारण, लक्षण और पूर्वरूप इन सबको जो वैद्य विधिपूर्वक जानता है वही राजाओंकी (राजयक्ष्माकी)
इति श्रीमहापाग्य है । सधपूर्वक जानता है
इति श्रीमहार्पचरक निदान० पं०रामप्रसादवैद्य० भापाटीकायां शोपरोगनिदान
नाम पठोऽध्यायः ॥६॥
सप्तमोऽध्यायः ।
अथोन्मादनिदानव्याख्यास्याम इति हस्माहभगवानात्रेयः। अव हम उन्मादके निदानकी व्याख्या करते हैं । इस प्रकार भगवान् आत्रे यजी कथन करनेलगे।
उन्मादके भेद। इह खलु पञ्च उन्मादाभवन्ति ।तद्यथा-वातपित्तकफसन्निपातागन्तुनिमित्तास्तत्र दोषनिमित्ताश्चत्वारः ॥ १॥ मनुष्यके शरीरमें उन्माद रोग पांच प्रकारसे होताहै । वातसे, पित्तसे, कफसे, सन्निपातसे और आगन्तुक कारणोंसे ॥१॥