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निदानस्थान-अ० ४. (४४९)
: प्रमेहनिदान भेद। . .. तत्रइमेनिदानादिविशेषाःश्लेष्मनिमित्तानांप्रमेह भिनिवृत्तिकराः। तद्यथा-- हायनकयवचीनकोदालकनैषधोत्कटमुकुन्दकमहाव्रीहिप्रमोदकसुगन्धकानांनवान्नानामतिवेलमतिप्रमाणेनोपयोगः। तथा : सर्पिष्मतांनवहरेणुमाषसूपानांग्राम्यानूपौदकानांमांसानांशाकतिलपललपिष्टान्नपायसकसरविलेपीक्षुविकाराणांक्षीरमन्दकदधिद्रवमधुरतरुणप्रायाणानुपयोगोमजाव्यायामवर्जनस्वनशयनासनप्रसंगोयश्चकश्चिद्विधिरन्योऽपिश्लेष्ममेदोमूत्रसंजननःसर्वःसनिदानविशेषः ॥४॥
सो यह निदानादि विशेष कफनिमित्तक प्रमेहोंको शीघ्र उत्पन्न करनेवाले होतेहैं जैसे जौ, शालिधान्य, चीना,कोदों, नैषध, मुकुन्दक, महाव्रीहि, प्रमोदक,सुगंधकः आदि धान्योंकी जातियोंका निरन्तर अधिक सेवन करना और घृतके साथं नवीन मटर और उडदकी दाल अधिक सेवन करना, ग्रामसंचारी, अनूपसंचारी एवम जलज जीवोंका मांस तथा शाक,तिल,पिष्टक,मैदा आदिगरिष्ठ पदार्थ,खीर,खिचडी,. विलेपी, शक्कर, गुड आदि ईखके विकार, दूध, मंदक, दही एवम् पतले और मीठे. पदार्थ, नवीन पदार्थ इन सबका अधिक सेवन करना तथा देहको सुकुमार बना रखना, कसरत न करना, बहुत सोना, सुन्दर नर्म शय्या और आसन आदिका. उपयोग करना इनके सिवाय अन्य भी जो आहार औरविहार कफ मेद तथा मूत्रके. वढानेवाले हैं वह सव कफजनित प्रमेहोंके निदान (कारण) होतेहे ॥ ४॥ यह कारण कहेगये)
दोषदूष्यका वर्णन । बहुद्रवश्लेष्मादोषेविशेषःबहुबद्धंमेदोमांसञ्चशरीरक्लेदःशुक्र: • शोणितञ्चवसामज्जालसाकारसश्चौजःसंख्याताइतिदृष्यविशे · षाः॥५॥
अब दोष और दूष्योंको कहतेहैं । कफजनित प्रमेहोंमें बहुतसे पतले द्रावयुक्त कफ जो है उसको दोष कहतेहैं । बहुत और बंधीहुई मेद, मांस, शरीरका क्लेद,. • शुक्र, रक्त, चर्बी, मज्जा,लसीका रंस और ओज यह सब प्रमेहरोगमें दुष्यं होतेहैं। 'कफदोषको उपरोक्त कारणोंका सेवन करना कुपित करताहै इसलिये उन कारणों