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निदानस्थान - अ० ४.
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ओजधातु स्वभावसे मधुर है । उसको जव वायु रूक्षतांसे तथा कषाय स्वभाबसे आकर्षण करलती है और मूत्राशयमें लेजाकर मधुरस्वभाववाले ओजसे प्रमेहको उत्पन्न करता है उसको मधुमेह कहते हैं ॥ ३२ ॥
वातप्रमेहोंको असाध्यत्व । तानिमांश्चतुरः प्रमेहान्वातजानसाध्यानाचक्षते । महात्ययिकाद्विप्रतिषिद्धोपक्रमत्वात् तेषामपि चपर्ववदगुणाविशेषेणनामविशेषाः ॥ ३३ ॥
इन वातसे उत्पन्न हुए चारों प्रमेहोंको असाध्य कहते हैं क्योंकि यह प्रमेह चिकिसामें विरोध पडनेसे और अत्यन्त सांघातिक होनेसे असाध्य होते हैं । और इनमें चसा और मज्जा आदि गुणयुक्त मूत्रके आनेसे उन्हीके समान नाम रक्खेगयेहैं ३३ ॥
तद्यथा ।
वसामेहश्चमज्जमेहश्चहस्ति मेहश्च मधुमेहश्चेति ॥ ३४ ॥
जैसे वसामेह, मज्जामेह, हस्तिमेह और मधुमेह यह चार प्रकारके नाम हैं ॥ ३४॥ तत्रश्लोकाः । वसामेहीके लक्षण । वातप्रमेहविशेषविज्ञानार्थाः । वसामिश्रंवसाभञ्चमूत्रमेहति योनरः । वसामेहिनमाहुस्तमसाध्यंवात कोपतः ॥ ३५ ॥
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उन वातजनित प्रमेोंके विशेष ज्ञानके लिये यहांपर श्लोक कहे जाते हैं। जिस मनु ष्यको वसा (चर्बी) युक्त तथा वसाके वर्णवाला मूत्र आता है उसको वातके कोपसे उत्पन्न हुआ वसामेह कहते हैं । यह वसामेह असाध्य होता है ॥ ३५ ॥
मज्जाही के लक्षण |
: मज्जानंसह मूत्रेणमुहुर्मे हतियोनरः । मज्जा मेहिनमाहुस्तमसाध्यंवातकोपतः ॥ ३६ ॥
जो मनुष्य मज्जायुक्त मूत्रको वारंवार मूतता है उसको मज्जामेही कहते हैं । यह चातकोपजनित मज्जामेह भी असाध्य होता है ॥ ३६ ॥
हस्तिमेहीका लक्षण |
हस्तीमत्तइवाजस्रंमूत्रंक्षरतियोभृशम् । हस्तिमेहिनमाहुस्तमसाध्यंवातकोपतः ॥ ३७॥