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निदानस्थान - अ० ४.
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- पित्तके कोपसे स्याहीके समान काला और गर्म मूत्र जिसको नित्य आता है उसको कालमेही कहते हैं ॥ २४ ॥
नीलमहीके लक्षण |
चाषपक्षनिभं मूत्रमम्लं मे हतियोनरः । पित्तस्यपरिकोपेनतविद्यान्नील मेहिनम् ॥ २५ ॥
जिसका नीलकंठके पंख के समान - नीलवर्णका मूत्र थोडा थोडा आता है उसको नीलमही कहतेहैं ॥ २५ ॥
रक्तमेहीके लक्षण ।
विस्रंलवणमुष्णञ्चरक्तंमेहतियोनरः ।
पित्तस्यपरिको पेनतविद्याद्रक्तमेहिनम् ॥ २६ ॥
रक्तमेही मनुष्यको - आमकीसी गंधयुक्त, नमकीन, गर्भं तथा रक्तके समान सूत्र. आता है - उसको रक्तमेही कहते हैं ॥ २६ ॥
मञ्जिष्ठमेह के लक्षण |
मजिष्ठा रूपियोऽजस्रं भृशविस्रंप्रमेहति ।
पित्तस्यपरिकोपात्तंविद्यान्माञ्जिष्ठमेहिनम् ॥ २७ ॥
जिस मनुष्यको मंजीठके समान बहुत गंधवाला नित्य मूत्र आता है उसको मंजि ष्ठामेही कहते हैं ॥ २७ ॥
हरिद्राहोंके लक्षण | हरिद्रोदकसङ्काशं कटुकंयः प्रमेहति । पित्तस्यपरिकोपात्तुविद्यादारिद्रमेहिनम् ॥ इतिषट्प्रमेहाः पित्तप्रकोपनिमित्ताव्या
ख्याताः ॥ २८ ॥
जिस मनुष्यको हल्दी के समान वर्णवाला और कटुमूत्र आता है उसको हरिद्रामेही कहते हैं । इस प्रकार पित्तके कोपसे उत्पन्न हुए छः प्रमेहिओं का कथन किया गया है । इति पित्तजनितषट्प्रमेहाः ॥ २८ ॥
वातप्रमेह होने का कारणकटुककषायतिक्तरूक्षलघुशीतव्यवायव्यायामवमनविरेचनास्थापन शिरोविरेचनातियोगसन्धारणानशनाभिघातात पोद्वेगशोकशोणिताभिषेकजागरणविषमशरीरन्यासानभ्युपसेवमा