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निदानस्थान-अ०५.. (४६१) हैं और त्वचा, मांस, रक्त एवं लसीका यह चार वातादि दोषों द्वारा बिगडजातेहैं । बस इन सात प्रकारके द्रव्योंके विकृत होनेसे ही कुष्ठोंकी उत्पत्ति होतीहै । ऐसा कोई भी कुछ नहीं होता जो केवल एक ही दोषके कोप होनेसे उत्पन्न हो जाताहो॥
अस्तितुखलुसमानप्ररुतीनामपिसतानांकुष्ठानांदोषांशबलवि- . कल्पानुबन्धस्थानविभागेनवेदनावर्णसंस्थानप्रभावनामचिकि- . सितविशेषः ॥२॥ सात प्रकारकेही कुष्ठ समान प्रकृति और समान कारणोंसे उत्पन्न होनेपर भी दोष, अंश, बल इनके विकल्पसे और स्थानके विभागसे वेदना, वर्ण, संस्थान और नामके प्रभावसे सबकी अलग २ प्रकारकी चिकित्सा की जाती है ॥ २॥ .
कुष्ठभेद । . ससप्तविधोऽष्टादशविधोपरिसंख्येयविधोवा ॥३॥ यह कुष्ठ मुख्य सात प्रकारके होते और दोषांश बलके विकल्पसे वह अठारह. प्रकारके होतेहैं एवम् सूक्ष्म विचार करने लगे तो असंख्य होजातेहैं ॥ ३ ॥
सातप्रकारके कुष्ठ । दोषाहिविकल्पनर्विकल्प्यमानाविकल्पयन्तिविकारानसंख्यानसाध्यभावात्तेषांविकल्पविकारसंख्यानेऽतिप्रसङ्गमभिसमक्ष्यि सप्तविधमेवकुष्ठविशेषमुपदेक्ष्यामः॥४॥ वातादि दोष ही अंशांश कल्पनासे अनेक भेदोंवाले होते हुए अनेक प्रकारके. विकारोंको उत्पन्न करतेहैं। उनके सूक्ष्म अंशांश कल्पना द्वारा रोगोंकी गणना करनसे सब विकागेका वर्णन करना कठिन होजाताहै इसलिये विशेषरूपसे कुष्ठ सात प्रकारकेही होतेहैं सो उनका वर्णन करतेहैं ॥ ४॥
- कुष्ठोंके भेद और उत्पत्तिके कारण । इहवातादिषुत्रिषुप्रकुपितेषुत्वगादींश्चतुरःप्रदूषयत्सुवातेऽधिक- . तरेकपालकुष्ठमभिनिर्वर्त्तते । पित्तेत्वोदुम्बरश्लेष्मणिमण्डलकुष्ठम् ॥ ५॥ यह वातादि तीनों दोष कुपित होकर त्वचाआदि चार प्रकारके दूष्य धातुओंको दूषित करदेतेहैं तो इनमें वायुकी अधिकता होनेसे कपालनामा कुष्ठ उत्पन्न होताहै। पित्तकी अधिकता होनेसे-उदुम्बरनामक कुष्ठ उत्पन्न होताहै एवम्. कफकी अधिकता होनेसे मण्डलनाम कुष्ठ उत्पन्न होताहै ।। ५॥. . .. .... .