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(४६६ ) चरकसंहिता-भा० टी० ।
सिध्मकुष्ठके लक्षण । परुषारुणविशीर्णबहिस्तनून्यन्तःस्निग्धानिशुक्लरक्तावभासानिबहून्यल्पवेदनान्यल्पकण्डूदाहपूयलसीकानिलघुसमुत्थानान्यल्पभेद-क्रिमीण्यलावु-पुष्पसङ्काशानिसिध्म-कुष्ठानीति विद्यात् ॥ १५॥ जो कुष्ठ बाहरके भागमें कठोर, लाल और फैला हुआसा हो और भीतर हलका हो, तथा चिकना, सफेद और लालवर्णयुक्त हो और वहुतही थोडी पीडावाला हो, जिसमें अल्पखुजली उठती हो एवम् दाह, राध और लसीका इन करके युक्त हो और बहुत छोटेपनसे प्रगट होना और फटना यह लक्षण हों, कृमियुक्त हो घीयाके फूल के समान वर्णवाला हो उसको सिध्मकुष्ठ कहतेहैं ॥ १९ ॥
काकणक कुष्टके लक्षण। .... काकणन्तिकावर्णान्यादौपश्चात्सर्वकुष्ठलिङ्गसमन्वितानिपापीयसांसर्वकुष्ठलिङ्गसम्भवनानेकवर्णानिकाकणकानीतिविद्यात्१क्षा काकणनामक कुष्ठ-पहिले रक्तकके समान वर्णवाले होतेहैं फिर संपूर्ण कुष्ठोंके लक्षणेस यक्त होजातेहैं । पापाजनोंके शरीरमें यह कुष्ठ होकर सब कुष्ठोंके लक्षणोंको धारण करतहैं तथा अनेक वर्णके होतेहैं । इन अनेक लक्षणवाले कुष्ठोंके वर्ण. वेदनादियुक्त कुष्ठको काकणकुष्ठ कहतेहैं ॥ १६ ॥ कुष्ठोंका साध्यासाध्य वर्णन।
' तान्यसाध्यानिसाध्यानिपुनरितराणि । तत्रयदसाध्यंतदसाध्यतांनातिवर्तते । साध्यंपुनःकिञ्चित्साध्यतामतिवर्ततेकदाचि- . दिपचारात् ॥ १७ ॥ सब का साध्य और असाध्यके भेदसे दो प्रकारके होतेहैं । उनमें काकण असाध्य है और बाकी साध्य हैं। इनमें जो असाध्य है वह अपनी असाध्यताको नहीं छोडता जोसाध्य है वह किसी प्रकारके कुपथ्यके होजानेसे असाध्यताको प्राप्त -होजातेहैं ॥ १७॥
साध्यानीहषटकाकणकवानिचिकित्स्यमानानिअपचारतोवादोषैरभिष्यन्दमानानिअसाध्यतामुपयान्ति.॥ १८॥ इनमें काकणकि कुष्ठके सिवाय बाकी छ। कुष्ठ साध्य मानेगयेहैं । परन्तु चिकि: