________________
(४६९)
निदानस्थान-अ०६. षष्ठोऽध्यायः
शोषनिदानम्। अथातःशोषनिदान व्याख्यास्यामइति हस्माह भगवानात्रयः।
अव हम शोषके निदानकी व्याख्या करते हैं ऐसे भगवान् आत्रेयजी कथन करनेलगे।
शोषोंके आयतनोंकी संख्या । इहखलुचत्वारिशोषस्यायतनानि । तयथा
साहसंसन्धारणं क्षयोविषमाशनमिति ॥१॥ इस शरीरमें शोषरोग होनेके चार कारण होते हैं । जैसे अपनी ताकतसे बढकर साहस करना सन्धारण ( मलमूत्रादि वेगोंको रोकना ) धातुओंका क्षय होना और विषमभोजन करना ॥१॥
साहसका वर्णन । तत्रयदुक्तंसाहसंशोषस्यायतनामितितदनुव्याख्यास्यामः । यदापुरुषोदुर्बलोहिसन्वलवतासहविगृह्णातिअतिमहतावाधनुषाव्यायच्छतिजल्पतिवातिमात्रमतिमात्रंवाभारमुबहतिअ. प्सुवाप्लवतेचातिदूरमुत्सादनपदाघातेनवातिप्रगाढमासेवते . अतिप्रकृष्टवाध्वानंद्रुतमभिपततिअभिहन्यतेवान्यद्वाकिञ्चिदेवंविधविषममतिमात्रंवाव्यायामजातमारभतेतस्यातिमात्रेणकर्मणाउरःक्षण्यतेतस्यउरःक्षतमुपप्लवतेवायुः । सतत्रावस्थिताश्लेष्माणमुरःस्थमुपसंगृह्यशोषयन्विहरत्यूर्द्धमधस्तिर्य
क्च ॥२॥ उनमें प्रथम साहस जो शोषका कारण कथन कियाहै उसकी व्याख्या करतेहैं। जब दुर्वल मनुष्य बलवान् मनुष्यसे मल्लयुद्ध करताहै अथवा बडे भारी धनुषको .अधिक वलसे खींचताहै एवम् बहुत जोरसे बहुत वोलताहै और अपनी सहनशक्तिसे बढकर भारको उठाताहै एवम् जलमें अधिक तैरता है । अत्यन्त बलपूर्वक अपनी छातीमें तैल आदिका मालिश कराताहै अथवा लात आदिकी वलवान् चोट लगनानेसे या बहुत ज्यादे पैरोंको हिलाताहै अथवा अत्यन्त कठिन मार्गमें बहुत भागताहै