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चरकसंहिता-भा० टी०। उदकमेही मनुष्य-कफके कोपसे स्वच्छ,बहुत, सफेद, शीतल, निर्गंध, जलके समान मूत्रको मूतता है ॥ १० ॥
इक्षुमेहके लक्षण । ... . अत्यर्थमधुरशीतमीषत्पिच्छिलमाविलम् ।
काण्डेक्षुरससङ्काशंश्लेष्मकोपात्प्रमेहति ॥ ११ ॥ . . . इक्षुमेही मनुष्य-अधिक, मधुर, शीतल, किंचित् पिच्छल,गन्धला, काण्डेक्षुके रसके समान मूतता है ॥ ११॥
सान्द्रमेहके लक्षण । ... यस्यपर्युषितंमूत्रसान्द्रीभवति भाजने। ..
पुरुषंकफकोपेनतमाहुःसांद्रमहिणम् ॥ १२॥ . . सान्द्रमेही मनुष्यका मूत्र-देरतक रक्खा रहनेसे गाढा और आन्तयुक्तसा होजाताहै इसीलिये इस कफजनित प्रमेहको सान्द्रमेह कहते हैं ॥ १२ ॥
सान्द्रप्रसादमेहके लक्षण । यस्यसंहन्यतमूत्रकिञ्चित्किञ्चित्प्रसीदति।
सान्द्रप्रसादमेहीतितमाहुः श्लेष्मकोपतः ॥ १३॥ जिस मनुष्यका मूत्र-देरतक रक्खा रहनेसे नीचेसे जमजाय और ऊपरसे हिलानेसे कुछ कुछ फैलावयुक्तसा होजाय उसको सान्द्रप्रसादमेही कहतेहैं ॥ १३ ॥
शुक्लमेहके लक्षण । शुक्लंपिष्टनि मूत्रमभीक्ष्णयाप्रमेहति। .
पुरुषकफकोपेनतमाहुःशुक्लमेहिनम् ॥ १४ ॥ जो मनुष्य-श्वेत और पिछीके धोवनके समान मूत्र करता है उसको शुक्लमेही कहतेहैं ॥ १४ ॥ .. .
शुक्रमेहके लक्षण। शुक्राभंशुक्रमिभंवामुहुमेंहतियोनरः।
शुक्रमहिणमेवाहुःपुरुषश्लेष्मकोपतः॥१५॥ जिस मनुष्यका मूत्र-शुक्रयुक्त अथवा शुक्रके समान हो तथा वह वारंवार थोडा थोडा मूतता हो उसको कफंजनित शुक्रमेह कहतेहैं ।। १५ ॥